पृष्ठभूमि
हिमाचल प्रदेश पर्वतीय राज्य है। यहां सांस्कृतिक वैविध्य की इन्द्रधनुषी रंगत देखने को मिलती है। राज्य में भाषा, कला, संस्कृति, संग्रहालय, पुरातत्व, अभिलेखागारीय इत्यादि कार्यों को सुनियोजित ढंग से निष्पादित करने के आशय से अप्रैल, 1973 को भाषा एवं संस्कृति निदेशालय की स्थापना की गई।
भाषायी गतिविधियों के अन्तर्गत हिन्दी, पहाड़ी, संस्कृत और उर्दू भाषा के उन्नयन और सुदृढीकरण के लिए योजनाओं को कार्यान्वित करना विभाग का दायित्व है। विभाग का मूल उद्देश्य पहाड़ी बोलियों में छिपी अनमोल सांस्कृतिक विरासत के उत्थान, संरक्षण और संवर्द्धन के लिए सांस्कृतिक सर्वेक्षण, कार्यशालाओं, सेमीनार, संगोष्ठियों आदि के माध्यम् से स्थानीय बोलियों में सामग्री संकलित कर उसे प्रकाश में लाना है। हिन्दी, संस्कृत, पहाड़ी और उर्दू भाषा को प्रोत्साहित करना भी विभाग के प्रमुख कार्यों में शामिल है। भाषायी भगीरथी के सतत प्रवाह को आगे बढ़ाना विभाग का कार्य है। इन्हीं भाषाओं और बोलियों से प्रदेश की अनाम संस्कृति, इतिहास, भाईचार, सद्भाव और राष्ट्रीय एकता के दिग्दर्शन होते है।
भाषा
निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मूल ।
बिनु निज भाषा ज्ञान के ,मिटे न हिय को सूल ।।
अर्थात: मातृभाषा की उन्नति के बिना किसी भी समाज की उन्नति सम्भव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीडा को दूर करना की मुश्किल है।
भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त कर सकते है और इसके लिए हम वाचिक ध्वनियों का प्रयोग करते है। भाषा मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बताई जाती है। सामान्यत भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र की अपनी एक भाषा होती है जो उसका गौरव होती है। राष्ट्रीय एकता और राष्ट्र के स्थायित्व के लिए राष्ट्र भाषा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। जो किसी भी राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण होती है।
किसी राष्ट्र को राष्ट्रभाषा बनने के लिए उनमें सर्वव्यापकता,प्रचुर साहित्य रचना, बनावट की दृष्टि से सरलता और वैज्ञानिकता, सब प्रकार के भावों को प्रकट करने की सामथ्र्य आद गुण होने अनिवार्य होते है। आज हिंदी देश के कोने-कोने में बोली जाती है।
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की शुरूआत 1857 में हुई थी इस प्रकार स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए 90 वर्ष तक संघर्ष हुआ। कई आन्दोलन हुए परिणामस्परूप देश में एक सूत्रता बढी । इस एक सूत्रता को बनाए रखने के लिए हिंदी भाषा ने अपना योगदान दिया। अपने आप को राष्ट्रीय रूप में स्थापित किया। हिंदी का अखिल भारतीय रूप राजनीतिक,सामाजिक,धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों से निखरा। जन साधारण से जब कोई भी किसी भी प्रदेश का हिंदू,सिख, मुसलमान नेता अपनी बात रखना चाहता तो बातचीत का माध्यम हिंदी ही होता था।
इस प्रकार स्वतन्त्रता के पश्चात हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा मिला। राजभाषा विभाग की स्थापना की गई । इसे लागू करने के लिए कई समितियाॅ, उपसमितियाॅ बनाई गई, राजभाषा अधिनियम पारित किए गए।
भाषा के क्षेत्र में भाषा एवं संस्कृति विभाग,हिमाचल प्रदेश का मुख्य उत्तरदायित्व हिन्दी, पहाड़ी, संस्कृत और उर्दू भाषाओं के उत्थान तथा प्रसार की योजनाओं को कार्यान्वित करना है। भाषाओं को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक अवसरों पर कवि सम्मेलन, लेखक गाेिष्ठयों, विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं तथा प्रशिक्षण शिविरों का आयोजनकरना समय-समय पर प्रसिद्ध विद्वानों की जयन्तियों, दिवसों का आयोजन तथा सभी भाषाओं से सम्बन्धित विभिन्न विधाओं में पुस्तकों तथा स्मारिकाओं का प्रकाशन करना है।
14 सितम्बर, 1949 को भारतीय संविधान सभा ने यह प्रस्ताव पारित किया था कि भारत की राष्ट्र भाषा हिन्दी होगी और इसकी लिपि देवनागरी रहेगी। इस धारा के साथ खुद को जोड़ते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा 25 जनवरी, 1965 को जारी की गई अधिसूचना के अनुसार हिन्दी को प्रदेश की राजभाषा घोषित किया गया है। प्रशासन में राजभाषा हिन्दी के प्रचालन हेतु सुविधा जुटाने का उत्तरदायित्त्व भाषा एवं संस्कृति विभाग को सौंपा है। विभाग द्वारा प्रशासन में राजभाषा का प्रयोग बढ़ाने हेतु हिन्दी से संबंधित सामग्री संकलन, संपादन एवं प्रकाशन कर समस्त विभागों/निगमों/बोर्डों आदि को निःशुल्क वितरित की जाती है। प्रदेश के समस्त कार्यालयों में कार्य हिन्दी में किए जाने के दृष्टिगत विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा समय-समय पर विभिन्न कार्यालयों का आकस्मिक निरीक्षण कर उनकी कठिनाईयों का समाधान किया जाता है। प्रथम, द्वितीय, तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों को हिन्दी दिवस के अवसर पर राजभाषा पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
लिपि
लिपि देवताओं की मूर्तियों पर अनेक प्राचीन आलेख उत्कीर्ण है। प्राचीन पुरातात्विक स्थलों ,ताम्रपत्रों,शिलालेखों में शारदा,ब्रह्मी,टांकरी,संस्कृति आदि लिपियों तथा पाण्डुलियों के रूप में अनेक महत्वपूर्ण दस्तावेज संरक्षित है। प्राचीन लिपियों में उपलब्ध पुरा अभिलेखों में गौरव पूर्ण इतिहास,संस्कृति,भाषा एवं साहित्य तथा लोक परम्परा के अनेक प्रसंग बिखरे पडे है जिनके संरक्षण प्रलेखन तथा प्रकाशन के लिए विभाग प्रयासरत है ताकि हमारी भावी पीढी अपने गौरवपूर्ण इतिहास और परम्परा का ज्ञान हासिल कर सके।
हिमाचल प्रदेश की प्राचीन लिपियाॅं
ब्राह्मी लिपि-ब्राह्मी लिपि का उद्भव एवं विकास सम्राट अशोक (272-232, ई.पु.) के समय में कालसी, गिरनार, कर्णाटक आदि भारतीय क्षेत्रों और श्रीलंका तथा मध्य एशिया तक ब्राह्मी लिपि का प्रसार हुआ। शुंग, कुषाण, गुप्त काल में भी ब्राह्मी लिपि प्रचलन में रही। हिमाचल प्रदेश के भरमौर में मेरू वर्मन के काल में भी ब्राह्मी लिपि के आलेख मिलते हैं। आधुनिक भारतीय लिपियां ब्राह्मी से ही विकसित हुई हैं।
शारदा लिपि– शारदा लिपि का उद्भव शारददेव देशा अर्थात् कश्मीर में हुआ। शारदा लिपि का सबसे पुराना शिलालेख सराहां (चम्बा) में मिलता है। चम्बा में 10 वीं शती में शारदा के लेख मिलते है। 11-12 वीं सदी में कुछ कश्मीरी पंडित सिरमौर के चैपाल, ठियोग आदि क्षेत्रों में आकर बसे जो शारदा के ग्रन्थ भी अपने साथ लाए।
खरोष्ठी-खरोष्ठी लिपि का उद्भव पश्चिमोत्तर भारत के गांधार क्षेत्र में ईसा पूर्व पांचवी सदी में हुआ। खरोष्ठी दाई से बाई ओर लिखी जाती है। खरोष्ठी में प्राचीनतम लेख अशोक कालीन (272-232 ई.पु.) मानसेहरा में मिलता है। औदुम्बर तथा कुणिंद सिक्कों पर खरोष्ठी के लेख अंकित हैं। 668 ई.पु. तक मध्य एशिया में खरोष्ठी का प्रचलन रहा है।
चंदवाणी-11 वीं शताब्दी में कश्मीर की रानी के साथ सिरमौर आए परिवार शारदा में लिखित ग्रन्थ अपने साथ लाए और सिरमौर के चैपाल, ठियोग, घूंड आदि क्षेत्रों में बस गए। इन्ही पण्डितों द्वारा कालांतर में चंदावणी, पंडवाणी, भटाक्षरी तथा पावुची आदि लिपियों का उद्भव एवं विकास हुआ। चंदवाणी लिपि ज्योतिष, कर्मकांड, तंत्र मंत्र, आयुर्वेद आदि विषयों पर ग्रन्थ रचे, जिन्हें ‘सांचा’ कहा जाता है।
चौपाल के भटेवड़ी तथा थरोच गांव में भाट चंद्र जयोतिष के आधार पर ‘चंदवाण’ हैं और इनकी लिपि चंदवाणी कहलाती है।
पावुची-सिरमौर जनपद में खडकांह, जवलोग और भगनोल गांवों के पंडितों की लिपि पाबुची है तथा इनके पास पावुच लिपि में प्राचीन सांचा उपलब्ध हैं।
पंडवाणी-शिमला जिला के ठियोग तहसील के बलग और चैपाल के मनेवटी व छतरौली गांवों में पांडो की लिपि पंडवाणी कहलाती है। इनके सांचे पंडवाणी में हस्तलिखित हैं।
भट्टाक्षरी-चैपाल के हरिपुरधार, कुणा, वेओग, घटोल और सिद्धयोटी आदि गांवों के भाटों की लिपि भट्टाक्षरी कहलाती है।
लान्चा लिपि-नेपाल के नेवार खानदान द्वारा ईजाद की गई संस्कृत मूलक लान्चा लिपि तिब्बत और हिमाचल प्रदेश के लाहुल स्पिति, किन्नौर, पांगी आदि बौद्ध क्षेत्रों में प्रचलित है। बौद्ध विहारों में लिखित मंत्र प्रायः लान्चा लिपि में ही है।
दिवस, जयन्तियाँ एवं समारोह
विभाग द्वारा नियमित रूप से आयोजित किए जाने वाली दिवस,जयन्तियाँ एवं समारोह निम्नलिखित हैं:-
1. पं० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जयन्ती समारोह-
विभाग हर वर्ष 6 तथा 7 जुलाई को जिला और राज्य स्तर पर पं० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जयंती का आयोजन करवाता है। ‘उसने कहा था’ कहानी के विख्यात लेखक और बहुमुखी प्रतिभा के धनी चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 7 जुलाई, 1883 को जयपुर में हुआ था। इनके वंशज कांगड़ा के गुलेर क्षेत्र से है। यह प्रदेश के लिए गौरवमयी घटना है कि विभाग हिन्दी साहित्य के इस प्रकांड विद्वान का जयन्ती समारोह हर वर्ष प्रदेश में मनाता है।
2. संस्कृत दिवस समारोह-
विभागीय परियोजना के अन्तर्गत हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत भाषा को लोकप्रिय बनाने हेतु विभाग द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा के पावन अवसर को संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है।
3. राजभाषा समारोह-
भारत की सविंधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 ई० को प्रस्ताव पारित किया कि हिन्दी देश की राजभाषा होगी और इसकी लिपि देवनागरी होगी। 26 जनवरी, 1950 ई० को देश का संविधान लागू होने पर हिन्दी को भी शासकीय काम-काज में प्रयोग करने के लिए राजभाषा का दर्जा हासिल हुआ। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) तथा 351 में प्रावधित प्रावधानों में राजभाषा हिन्दी के शासकीय कामकाज में प्रयोग तथा हिन्दी के विकास का उल्लेख किया गया है।
संविधान की इन्हीं व्यवस्थाओं के अनुरूप हिमाचल प्रदेश सरकार ने सन् 1975 में राजभाषा अधिनियम पारित किया तथा 26 जनवरी, 1978 से प्रशासन में हिन्दी का शतप्रतिशत प्रयोग करने संबंधी आदेश जारी किए और शासकीय कामकाज को हिन्दी में करने का संकल्प लिया।
विभाग हर वर्ष हिन्दी भाषा को प्रदेश में प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सितम्बर मास में राजभाषा पखवाड़ा का आयोजन करता है। इस आयोजन की प्रक्रिया इस प्रकार से रहती है।
3 सितम्बर से 10 सितम्बर-
जिला स्तरीय स्कूली हिन्दी निबन्ध लेखन, प्रश्नोत्तरी एवं भाषण प्रतियोगिताएं जिला स्तर पर सम्बन्धित जिला भाषा अधिकारियों द्वारा करवाई जाती है। जिला स्तर पर प्रथम व द्वितीय स्थान हासिल करने वाले प्रत्येक विजेता और उप विजेता के नाम राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए निदेशालय शिमला आमन्त्रित करवाए जाते हैं। राज्यस्तरीय महाविद्यालय हिन्दी निबन्ध लेखन, कविता पाठ, कविता लेखन, प्रश्नोत्तरी तथा भाषण प्रतियोगिता के लिए जिला भाषा अधिकारियों के माध्यम से सभी महाविद्यालयों से प्रत्येक विधा के लिए दो-दो प्रतिभागियों के नाम आमन्त्रित किए जाते हैं। इन विद्यालय स्तर और महाविद्यालय स्तर की निबन्ध लेखन तथा भाषण प्रतियोगिता के विषय निदेशालय द्वारा 21 अगस्त तक सभी जिला भाषा अधिकारियों को भेज दिए जाते हैं। कविता पाठ और कविता लेखन प्रतियोगिता छात्रों की स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचनाओं के आधार पर होती है। हिन्दी प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता हिमाचल के सामान्य ज्ञान तथा हिन्दी साहित्य और व्याकरण पर आधारित होती है।प्रथम, द्वितीय, तृतीय तथा सांत्वना स्थान हासिल करने वाले को पुरस्कृत किया जाता हैi
11 सितम्बर से 14 सितम्बर-
इस अवधि में शिमला के गेयटी थियेटर में विद्यालय व महाविद्यालय के प्रतिभागियों की हिन्दी विधा पर अनेक राज्यस्तरीय प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं। 14 सितम्बर को राजभाषा पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किया जाता है तथा सायंकालीन सत्र में राज्यस्तरीय हिन्दी कवि सम्मेलन करवाया जाता है।
4. पहाड़ी दिवस समारोह-
प्रथम नवम्बर 1966 को पंजाब राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर एक समान भौगोलिक परिवेश और मिलती-जुलती बोलियों के आधार पर हिमाचल प्रदेश के साथ पंजाब राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों को शामिल कर विशाल हिमाचल का गठन किया गया। इस ऐतिहासिक स्मृति को अमर रखने के लिए विभाग हरवर्ष पहाड़ी दिवस मनाता है। यह कार्यक्रम विभाग के वार्षिक आयोजनों में सम्मिलित है। राज्य में पहाड़ी बोलियों के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए विभाग हरवर्ष पहाड़ी दिवसएक व दो नवम्बर को जिला और राज्य स्तर पर मनाता है। इस आयोजन में राज्यस्तरीय पहाड़ी कवि संगोष्ठी तथा दो विदवानों से पहाड़ी बोलियों पर विभाग द्वारा प्रदत्त विषयों पर आलेख प्रस्तुत करवाएं जाते हैं।
5. यशपाल जयन्ती समारोह-
हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं देश की क्रांतिकारी विभूतियों में एक यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर, 1903 ई० को पंजाब के फिरोजपुर में हुआ। इनके पूर्वज हमीरपुर जिला के भराईयां टिक्कर भूम्पल के निवासी थे। यशपाल का प्रारम्भिक जीवन हिमाचल में बीता। देश की आज़ादी में क्रांतिकारी भूमिका निभाते हुए इन्होंने हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी साहित्य का सृजन किया इस मूर्धन्य साहित्यकार ने हिन्दी साहित्य जगत में अक्षुण्य स्थान है।इस क्रांतिकारी साहित्यकार की याद में विभाग हरवर्ष इनकी जयंती पर 3 व 4 दिसम्बर को जिला और राज्य स्तर पर साहित्यिक समारोह का आयोजन करवाता है। इन आयोजनों में यशपाल के व्यक्तिव और कृतित्व तथा इनके विपुल साहित्य पर विभाग प्रदेश के विद्वानों से शोध आलेखों वाचन करवाता है और कवि सम्मेलनों का आयोजन भी करवाता है।
5. यशपाल जयन्ती समारोह-
हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं देश की क्रांतिकारी विभूतियों में एक यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर, 1903 ई० को पंजाब के फिरोजपुर में हुआ। इनके पूर्वज हमीरपुर जिला के भराईयां टिक्कर भूम्पल के निवासी थे। यशपाल का प्रारम्भिक जीवन हिमाचल में बीता। देश की आज़ादी में क्रांतिकारी भूमिका निभाते हुए इन्होंने हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी साहित्य का सृजन किया इस मूर्धन्य साहित्यकार ने हिन्दी साहित्य जगत में अक्षुण्य स्थान है।इस क्रांतिकारी साहित्यकार की याद में विभाग हरवर्ष इनकी जयंती पर 3 व 4 दिसम्बर को जिला और राज्य स्तर पर साहित्यिक समारोह का आयोजन करवाता है। इन आयोजनों में यशपाल के व्यक्तिव और कृतित्व तथा इनके विपुल साहित्य पर विभाग प्रदेश के विद्वानों से शोध आलेखों वाचन करवाता है और कवि सम्मेलनों का आयोजन भी करवाता है।
1. मुशायरा आयोजन-
विभाग हिमाचल प्रदेश में उर्दू के प्रचार-प्रसार के लिए समय-समय पर राज्य व राष्ट्र स्तर पर उर्दू मुशायरा का आयोजन बजट की उपलब्धता के आधार पर करवाता है।
हिन्दी कविता, कहानी, उपन्यासपर संवाद संगोष्ठी, सेमीनार, शोध पत्र वाचन,प्रतियोगिताओं आदि का आयोजन-
विभाग हिन्दी की इन विधाओं पर सन्दर्भाधित प्रसंग के अनुरूप वर्णित प्रक्रिया के दृष्टिगत बजट की उपलब्धता को ध्यान में रखकर ऐसे आयोजनों को कार्यान्वित करवाता है|
पहाड़ी बोली पर राज्यस्तरीय कार्यशाला, सेमीनार, संगोष्ठी आदि का आयोजन-
हिमाचल प्रदेश में पहाड़ी बोलियों के व्यापक प्रचार-प्रसार और प्रोत्सहान के लिए विभाग पहाड़ी बोलियों पर राज्यस्तरीय कार्यशालाओं, सेमीनार, संगोष्ठी, पहाड़ी सप्ताह आदि का आयोजन बजट की उपलब्धता के अनुसार करवाता है।
सहायतानुदान
हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी संस्था अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत प्रदेश की ऐसी संस्थाओं को विभाग द्वारा साहित्यिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए सहायतानुदान दिया जाता है जो पंजीकरण की तिथि से तीन वर्षो तक लगातार अपने खर्चे पर साहित्यिक कार्यक्रम करवाती आ रही है। सहायतानुदान बजट प्रावधानों पर निर्भर करता है। सहायतानुदान के लिए विभागीय प्रपत्र वांछित दस्तावेजों के साथ सम्बन्धित जिला भाषा अधिकारियों के माध्यम् से (निदेशालय) विभाग में संस्था को प्रस्तुत करना होता है| आवश्यक दस्तावेजों में कार्यक्रम का अनुमानित व्यय विवरण, फोटो, कार्ड आदि शामिल है।सहायतानुदान पर अधिक जानकारी के लिए साहित्यकार संबंधित जिला के जिला भाषा अधिकारी से संवाद और संम्पर्क स्थापित कर सकते हैं।
सहायतानुदान प्राप्त करने वाली संस्था की संवीक्षा और निरीक्षण विभागसमय-समय पर करवाता है| कार्ड, बैनर, पोस्टर आदि में विभाग द्वारा दी गई सहायता का उल्लेख अवश्य होना चाहिए।
विभागीय प्रकाशन
विभाग द्वारा हिमाचली संस्कृति, भाषा, बोलियों आदि के प्रचार-प्रसार और उन्नयन के लिए समय-समय पर विभिन्न प्रकार की पुस्तकों का प्रकाशन किया गया। विभिन्न विभागीय प्रकाशनों का अवलोकन करे-
पहाड़ी बोलियों पर प्रकाशित पुस्तकें
क्रमांक | नाम | मूल्य | वर्ष |
---|---|---|---|
1 | शोधपत्रावली भाग-I | पहाड़ी भाषा, साहित्य, संस्कृति पर समीक्षात्मक एवं शोधपरक लेख | 1970 |
2 | हिन्दी-हिमाचली शब्दावली | हिन्दी के दो हजार आधारभूत शब्दों के हिमाचल की सात पहाड़ी उप-भाषाओं में पर्यायवाची शब्द | 1970 |
3 | काव्य धारा भाग-I | पहाड़ी कविता संग्रह | 1971 |
4 | चंगेर फुल्लां री | पहाड़ी निबन्ध और लेख संग्रह | 1971 |
5 | पहाड़ी (हिमाचली) भाषा-वर्तमान और भविष्य | हिन्दी में विवेचित पहाड़ी बोलियों का क्षेत्र और साहित्य | 1971 |
6 | प्रेखण | पहाड़ी एकांकी नाटक | 1972 |
7 | शोधपत्रावली भाग-II | 1972 | |
8 | बरासा रे फूल | पहाड़ी कहानी संग्रह | 1972 |
9 | हिम भारती ‘‘त्रैमासिक पत्रिका’’ | पहाड़ी भाषा और साहित्य पर | 1969 से 1978 तक 34 अंक |
10 | काव्य धारा भाग-II | 1974 | |
11 | शोधपत्रावली भाग-III | 1974 | |
12 | सोला सिंगी | 1975 | |
13 | पहाड़ी लेखमाला | 1975 | |
14 | काव्य धारा भाग-III | 1976 | |
15 | पहाड़ी भाषा और लोक साहित्य | हिमाचल की पहाड़ी भाषा तथा लोक साहित्य पर लेख | 1976 |
16 | लोसरा रे फूल | पहाड़ी कहानी संग्रह | 1977 |
17 | भाषायी एवं सांस्कृतिक सर्वेक्षण | प्रदेश की भाषा तथा संस्कृति पर राज्यस्तरीय सर्वेक्षण | 1987 |
18 | गादी हिन्दी प्रयोगात्मक शब्दावली | गद्दी समुदाय से जुड़े गद्दी-पहाड़ी शब्दों, मुहावरों आदि का संयोजन | 1982 |
19 | काव्य धारा भाग-IV | 1988 | |
20 | हिमाचल प्रदेश के स्थान नाम व्युत्पत्तिजन्य विवेचनात्मक अध्ययन | पहाड़ी परिवेश के स्थान नामों का हिन्दी में वर्णन | 2010 |
निशुल्क प्रकाशन
1 | हिन्दी स्मारिका, |
2 | रामचरित मानस स्मारिका, |
3 | अंग्रेजी-हिन्दी प्रशासनिक शब्दावली, |
4 | अंग्रेजी-हिन्दी पदनाम शब्दावली, |
5 | अंग्रेजी-हिन्दी राजस्व शब्दावली, |
6 | हिन्दी परमार्थ, |
7 | कार्यालय सहायिका, |
8 | संस्कृत स्मारिका, |
9 | पहाड़ी भाषा और लोक साहित्य, |
10 | हिन्दी-हिमाचली (पहाड़ी शब्दावली), |
11 | काव्य धारा (तीन भाग), |
12 | शोध पत्रावली (तीन भाग), |
13 | पहाड़ी भाषा वर्तमान और भविष्य, |
14 | चंगेर फुल्ला री (पहाड़ी निबन्ध संग्रह), |
15 | पहाड़ी लेखमाला, |
16 | प्रेखण-पहाड़ी एकांकी संग्रह, |
17 | सोलह-सिंगी (पहाड़ी एकांकी संग्र्रह), |
18 | बरासा रे फुल्ल (पहाड़ी कहानी संग्रह), |
19 | लोसरा रे फुल्ल, |
20 | पहाड़ी-हिन्दी शब्दकोष (प्रथम भाग), |
21 | गाद्दी प्रयोगात्मक शब्दावली, |
22 | पहाड़ी काव्य धारा (चार भाग), |
23 | संस्कृत स्मारिका भाग-4, |
24 | संस्कृति-1986, |
25 | संस्कृति-1987, |
26 | संस्कृति-1988, |
27 | लोकोक्त्ति संग्रह (पहाड़ी), |
28 | हिमाचल प्रदेश के मन्दिर, |
29 | गुग्गा गाथा, |
30 | हिमाचली मुहावरा संग्रह, |
31 | भाषायी एवं सांस्कृतिक सर्वेक्षण (सेमीनार आधारित), |
32 | प्रशासनिक हिन्दी सहायिका, |
33 | पदनाम शब्दावली, |
34 | लोकगीत संग्रह, |
35 | ताबो बौद्ध विहार सहस्त्राब्दी, |
36 | राजभाषा का शुद्ध प्रयोग, |
37 | प्रशासनिक शब्द संग्रह, |
38 | संस्कृत सुधानिधि, |
49 | प्रशासनिक शब्दावली, |
40 | करगिल गाथा, |
41 | बार्नस कोर्ट, |
42 | भाषा एवं संस्कृति विभाग-एक परिचय, |
43 | संस्कृति-2004, |
44 | सर्वेक्षण पुस्तिका (संशोधित संस्करण), |
45 | चम्बा सहस्त्राब्दी स्मारिका, |
46 | Sunny snows (an anthology of english poems) |
47 | Acts & Rules Related to Department of Language & Culture |
48 | स्मृतियां (स्मारिका), |
49 | हिमाचल प्रदेश के स्वतन्त्रता सेनानी (प्रथम खण्ड), |
50 | संघर्ष के वे दिन (स्मारिका), |
51 | हिमाचल प्रदेश में स्वतन्त्रता संग्राम का संक्षिप्त इतिहास, |
52 | स्वाधीनता की ओर (स्मारिका), |
53 | नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जन्म शताब्दी (स्मारिका), |
54 | हि0प्र0 में स्वतन्त्रता संग्राम का संक्षिप्त इतिहास (पुर्नमुद्रण), |
55 | हिमाचल प्रदेश के स्वतन्त्रता सेनानी (द्वितीय खण्ड), |
56 | स्वाधीनता का संकल्प (स्मारिका), |
57 | हिमाचल प्रदेश में स्वतन्त्रता संग्राम का इतिहास, |
58 | राजभाषा पत्रिका विविधा-2016, |
59 | राजभाषा पत्रिका विविधा-2017, |
60 | संस्कृति-2017, |
61 | राजभाषा पत्रिका विविधा-2018, |
समूल्य प्रकाशन
1 | राहुल को हिमाचल का प्रणाम | 125-00 |
2 | सिद्धबाबा बालक नाथ मन्दिर, दियोटसिद्ध | 15-00 |
3 | यशपाल कृतित्व एवं व्यक्तित्व | 150-00 |
4 | पण्डित चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ | 125-00 |
5 | पूजा बोध | 60-00 |
6 | सिद्धबाबा बालक नाथ धाम, दियोटसिद्ध (पंजाबी रूपांतरण) | 15-00 |
7 | श्री नयना देवी शक्तिपीठ | 15-00 |
8 | संस्कृत सुभाषित हिमांजली | 50-00 |
9 | हिमाचल प्रदेश के पारम्परिक परिधान एवं आभूषण | 100-00 |
10 | हिमाचल प्रदेश के धार्मिक संस्थान | 50.00 |
11 | संस्कार गीत | 100.00 |
12 | History of Punjab Hill State Vol. I & II | 400-00 |
13 | Nicholas K. Roerich | 35.00 |
14 | Chamba-The Celestial Valley | 190.00 |
15 | The Temple of Himachal | 325-00 |
16 | Himachal Pradesh Cultural Heritage | 1.00 |
17 | Svetoslav Roerich | 60.00 |
18 | आबशार (उर्दू गजलों एवं नजमों का संग्रह) | 12-00 |
19 | धूप-छांव (उर्दू गजलों एवं नजमों का संग्रह) | 16-00 |
20 | Nascent Warmth (An Anthology of English Poems) | 55.00 |
21 | समेकित प्रशासनिक शब्दावली (हिन्दी-अंग्रेजी) | 150-00 |
22 | हिमाचल प्रदेश के स्थान नाम व्युत्पतिजन्य विवेचनात्मक अध्ययन | 175-00 |
23 | हिमाचल प्रदेश के लोकगीत | 100-00 |
24 | हिमाचल के मन्दिर न्यास और देव आस्थाएं | 250-00 |
25 | जिला बिलासपुर की संस्कृति एवं संस्कारगीत | 100-00 |
पत्रिकाएं:- | ||
1 | विपाशा (द्वैमासिक)-एक प्रति | 15.00-00 |
2 | ज़दीद फिक्र-ओ-फन (त्रैमासिक)-एक प्रति | 5.00-00 |
विचाराधीन प्रकाशन
(I) समकालीन हिमाचली काव्य संग्रह
(II) साहित्यकार एवं कलाकार नामावली
(II) हिमाचली लोकगाथाएं
(IV) युवा काव्यवली
साहित्यकार और कलाकार नामावली
हिमाचल प्रदेश के साहित्यकार और कलाकारों को विभागीय कार्यक्रमों के साथ सहयोजित करने के उद्देश्य से विभाग प्रदेश के साहित्यकारों और कलाकारों की नामावली तैयार कर रहा है। साहित्यकार और कलाकार नामावली का अवलोकन करे-
इस नामावली में अगर साहित्यकार और कलाकार कोई सूचना जोड़ना चाहते है तो वे विभाग द्वारा निर्धारित पंजीकरण प्रपत्र को आन लाइन या फिर आफ लाईन भर कर दे सकते है। प्रपत्र देखे-
हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य सम्मान (साहित्य)
भाषाओं के उन्नयन और भाषाओं प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विभागीय योजना के अन्तर्गत हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, पहाड़ी साहित्य सृजन और हिमाचली संस्कृति पर लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए प्रदेश पांच राज्य सम्मान स्थापित किए गए हैं । राज्य सम्मान नियम देखे-
- पं० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी राज्य सम्मान –हिन्दी साहित्य सृजन के लिए
- पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम राज्य सम्मान–पहाड़ी साहित्य सृजन के लिए
- संस्कृत साहित्य राज्य सम्मान — संस्कृत साहित्य सृजन के लिए
- उर्दू साहित्य राज्य सम्मान– उर्दू साहित्य सृजन के लिए
- डॅा. यशवन्त सिंह परमार राज्य सम्मान– हिमाचली संस्कृति पर लेखन के लिए
नोट- संशोधित नियमों का प्रारूप प्रशासनिक विभाग के विचाराधीन है।
राजभाषा अधिनियम
भारत की सविंधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 ई० को प्रस्ताव पारित किया कि हिन्दी देश की राजभाषा होगी और इसकी लिपि देवनागरी होगी। 26 जनवरी, 1950 ई० को देश का संविधान लागू होने पर हिन्दी को भी शासकीय काम-काज में प्रयोग करने के लिए राजभाषा का दर्जा हासिल हुआ। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) तथा 351 में प्रावधित प्रावधानों में राजभाषा हिन्दी का उल्लेख किया गया है।
संविधान की इस व्यवस्था के अनुरूप हिमाचल प्रदेश सरकार ने सन् 1975 में राजभाषा अधिनियम पारित किया तथा 26 जनवरी, 1978 से प्रशासन में हिन्दी का शतप्रतिशत प्रयोग करने संबंधी आदेश जारी किए। अधिक जानकारी के लिए राजभाषा अधिनियम देखे-
सम्पर्क अधिकारी
क्रमांक | नाम | पदनाम | विभाग | दूरभाष |
---|---|---|---|---|
1 | ञिलोक सूय॔वंशी | सहायक निदेशक (भाषा) | भाषा एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश, शिमला-09 | 0177-2626614-15 |
2 | अजय शर्मा | उप-सम्पादक | भाषा एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश, शिमला-09 | 0177-2626614-15 सचलभाष नं०-9418986690 |
विपाशा पत्रिका
हिमाचल प्रदेश के साहित्य, संस्कृति, कला और इतिहास के संरक्षण, संवर्द्धन तथा इनके प्रचार-प्रसार का दायित्व प्रदेश सरकार का भाषा एवं संस्कृति विभाग अपने अस्तित्व में आने के बाद से निरन्तर निभाता आ रहा है। प्रदेश के साहित्यकारों, कलाकारों और रंगकर्मियों को उपयुक्त मंच उपलब्ध करवाने और उन्हें देशभर के साहित्य और संास्कृतिक फलक से जोड़ने की कड़ी का निर्वहन भी विभाग ही करता है।
साहित्यिक विधाओं के निश्पादन हेतु विभाग द्वारा अप्रैल 1985 से द्वैमासिक पत्रिका, विपाशा का प्रकाशन किया जा रहा है। विपाशा, हिमाचल प्रदेश की साहित्यिक थाती को राश्ट्रीय धारा के साहित्यिक माहौल से मेल करवाने में सेतु का काम करती है। पत्रिका में समकालीन साहित्य के साथ-साथ भारतीय दर्शंन एवं इतिहास से सम्बंधित सामग्री भी समय-समय पर प्रकाशित की जाती है। देशभर के नामचीन साहित्यकार विपाशा में प्रकाशित हो चुके हैं। अतः पत्रिका अपने प्रकाशन के प्रारम्भ से लेकर वर्तमान तक अपने स्तर को बनाए रखने में कामयाब रही है।
हिमाचल प्रदेश के सुधी साहित्यकार विपाशा में प्रकाशित होने पर गौरव अनुभव करते हैं। पत्रिका की विषयवस्तु में समकालीन साहित्य से लेकर हिमाचली लोक-साहित्य, लोक-परम्पराएँ, तीज त्यौहार तथा यहाँ के पारम्परिक रीति-रिवाजो पर शोध लेख भी प्रकाशित किए जाते हैं। पत्रिका में प्रदेश के ऐतिहासिक और सुप्रसिद्ध कलात्मक विशेषता लिए मंदिरों, किलों और अपने में प्राचीन इतिहास समेटे हुए स्मारकों के रंगदार चित्र भी प्रकाशित किए जाते है। यदा-कदा प्राकृतिक दृश्यों को दर्शाने वाले नैसर्गिक आभा लिए भूखण्डों, वनराषियांे और हिमाच्छादित पर्वत मालाओं के चित्र भी पत्रिका के आवरण पृष्ठों को शोभायमान करते हैं।
राष्ट्र स्तर के लब्ध-प्रतिश्ठ साहित्यकारों का स्मरण करते हुए तथा उनके साहित्यिक अवदान को सूक्ष रूप में सुरक्षित रखने और सारस्वत धर्म के पालन की दृश्टि से समय-समय पर विशेषांक भी निकाले जाते रहे हैं, जिसकी एक लम्बी सूची है। पत्रिका की विषयवस्तु में शोध लेख, कविता, कहानी, नाटक एवं उपन्यास अंश, समीक्षा तथा लोक संस्कृति/शोध संस्कृति पर केन्द्रित रहती है। साहित्य के माध्यम से अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर सम्वाद बनाए रखने हेतु देशान्तर में अनूदित रचनाएँ भी जाती हैं। साथ ही प्रादेशिक भाषाओ के लिए अलग से भाषान्तर स्तम्भ भी निरन्तर रहता है।
साहित्य, संस्कृति एवं कला की द्वैमासिकी
भाषा एवं संस्कृति विभाग के कार्यक्षेत्र को देखते हुए वर्श 1985 में विभाग की ओर से हिन्दी साहित्य की पत्रिका ‘विपाशा’ का प्रकाशन आरम्भ किया गया । यह द्वैमासिक पत्रिका साहित्य, संस्कृति एवं कला को समर्पित है । इस का उद्देश्य पाठकों को रचनात्मक साहित्य की विभिन्न् विधाओं के साथ कला, संस्कृति विषयक स्तरीय सामग्री उपलब्ध करवाना है । यह पत्रिका प्रदेश की ओर से राश्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में खुलने वाले रचनात्मक गवाक्ष की भांति है । पत्रिका अपने प्रकाशन के 34 वर्ष पूरे कर चुकी है । यह प्रदेश तथा देश के रचनाकारों के मध्य आदान-प्रदान के उद्देश्य की पूर्ति करती है । इस पत्रिका के माध्यम से विभिन्न् पीढ़ियों के रचनाकारों को एक साथ मंच मिल पाता है और रचनाकारों के प्रोत्साहन, पाठकों के अध्ययन तथा शोधार्थियों के शोध के लिए यह पत्रिका दूरगामी महत्त्व की है ।
पत्रिका के प्रकाशित विशेषांक
क्रमांक | नाम |
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1 | कहानी विशेषांक, अंक-7 |
2 | किन्न्र कविता शिविर, अंक-12 |
3 | वागर्थ विशव कविता शिविर, अंक-26 |
4 | अमृता शेरगिल, अंक-43 |
5 | शमशेर बहादुर सिंह, अंक-50 |
6 | राहुल सांस्कृत्यान, अंक-51 |
7 | ज. स्वामीनाथन, अंक-58 |
8 | बौद्ध संस्कृति, अंक-66 |
9 | कहानी, अंक-70-72 |
10 | सुभाश चन्द्र बोस, अंक-73 |
11 | सरदार शोभा सिंह, अंक-93 |
12 | शतक, अंक-100-102 |
13 | यशपाल, अंक-107,167 |
14 | मण्डी, अंक-111 |
15 | प्रेम चन्द, अंक-112,171-172 |
16 | राजभाषा , अंक-117 |
17 | निर्मल वर्मा, अंक-119,160 |
18 | चम्बा, अंक-122 |
19 | कविता, अंक-123-124 |
20 | स्वतन्त्रता संग्राम, अंक-128 |
21 | शिमला, अंक-130-131 |
22 | भूरि सिंह संग्रहालय शताब्दी, अंक-135 |
23 | कहानी प्रतियोगिता, अंक-138-140 |
24 | कवि चतुश्टय (अज्ञेय, षमषेर, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल)- अंक-154-155 |
25 | पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, अंक-165-166 |
26 | भवानी प्रसाद मिश्र, अंक-168 |
27 | केदारनाथ सिंह, अंक-195 |
पत्रिका के नियमित स्तम्भ
क्रमांक | नाम |
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1 | पाठकीय (पाठकों की प्रतिक्रियाएँ) |
2 | संपादकीय |
3 | हिन्दी कविता, कहानी, निबन्ध, लेख आदि मुख्य विधाएँ |
4 | भाषांतर (भारतीय भाषाओ की रचनाओं के अनुवाद) |
5 | देशांतर (विदेशी भाषाओ की रचनाओं के अनुवाद) |
6 | संस्कृति-शोध (कला-संस्कृति सम्बधी षोध लेख) |
7 | समीक्षा (पुस्तकों की समीक्षाएँ) |
8 | आयोजन (साहित्य ,कला, संस्कृति सम्बधी आयोजनों की रपटें) |
9 | पाहुन (प्रदेश के बाहर से आगन्तुक लेखकों द्वारा हिमाचल की पृश्ठभूमि पर लिखी गई रचनाएँ) |
- पत्रिका प्रकाशन : द्वैमासिक ( पंजी. क्र. 42497/85)
- आकार: 16×24 सैं.मी.
- कुल पृष्ठ : सामान्य अंकः 96
- विशेषांक : 96-320
- आवरण: बहुरंगी, भीतरी पृष्ठ : एक रंग
सम्पादकीय सम्पर्क:
अजय शर्मा, उप सम्पादक-विपाशा,
भाषा एवं संस्कृति विभाग (हि.प्र.),
39-एस. डी. ए. परिसर,
शिमला – 171 009