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    मन्दिर प्रबन्धन

    प्रमुख मन्दिर व अन्य धार्मिक स्थल

    देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों की स्थली होने के कारण हिमाचल प्रदेश की आध्यात्मिक काया अभी भी अक्षुण्ण बनी हुई है। आज भी इस प्रदेश में मूल पुरातन सभ्यता तथा संस्कृति के दर्शन होते हैं। हिमाचल की संस्कृति के पुरातन स्वरूप अपने उसी रूप में सुरक्षित हैं। नागाधिराज हिमालय अपने मनभावन सौन्दर्य और अद्भुत एकान्त के कारण देवताओं और ऋषि-मुनियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। अतः हिमालय का यह क्षेत्र इनकी तपोभूमि बना।

    श्री ज्वालामुखी मन्दिर

    पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि यहाँ सती की जीभ गिरी थी और ज्वाला के रूप में प्रकट हुई थी। यह शक्तिपीठ इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। कहते हैं कि उमा या सती के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा रचाए गये यज्ञ में जब उमा ने अपने पति शिव की अवहेलना देखी, तो उन्होंने यज्ञ कुण्ड में अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी। इस अप्रत्याशित सदमें में दुःखी शिव ने सती के मृत शरीर को उठाकर ताण्डव शुरू कर दिया। तब विष्णु ने किसी अनहोनी की आशंका से अपने सुदर्शन चक्र से सती का शरीर खण्डित कर दिया। सती के शरीर के ये खण्ड भारत में इक्यावन स्थानों पर गिरे और ये स्थान शक्तिपीठ कहलाए। हिमाचल प्रदेश का यह प्रसिद्ध मन्दिर काँगड़ा जिला में मन्दिर शिवालिक पर्वत शृंखला की कालीधार उपत्यका के साथ लगती ब्यास घाटी में समुद्रतल से 610 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। शिमला, धर्मशाला राजमार्ग के दाहिनी ओर ज्वालामुखी शहर की एक पहाड़ी के आंचल में स्थित यह भव्य मन्दिर प्रदेश की राजधानी शिमला से 205 किलोमीटर तथा जिला मुख्यालय धर्मशाला से मात्र 55 किलामीटर की दूरी पर है। यह स्थान मनाली और चण्डीगढ़ से एक समान दूरी 200 किलोमीटर स्थित है। पंजाब से आने वाले यात्री यहाँ पठानकोट और होशियारपुर से भी आ सकते हैं, इन दोनों स्थानों की दूरी यहाँ से क्रमशः 120 किलोमीटर एवं 85 किलोमीटर है।

    श्री वज्रेश्वरी मन्दिर

    काँगड़ा बाजार से लगभग 100 मीटर पैदल चलकर वज्रेश्वरी माता का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है। प्राचीन कला से इस मन्दिर के लिए विभिन्न क्षेत्रों में स्वर्ण, जगदेश्वरी भवन, नगरकोट धामकोट काँगड़े वाली माता, भौणवाली माता, ब्रजेश्वरी और वज्रेश्वरी आदि नाम आए हैं। यह मन्दिर एक पहाड़ी ढ़लान पर स्थित है। बाणगंगा एवं मांझी नदियों के संगम के निकट बसा पुराना काँगड़ा दो मौजों (टिक्कों) में आबाद है जबकि काँगड़ा भवन तीन मौजों (टिक्कों) में फैला हुआ है। इसी काँगड़ा भवन क्षेत्र के एक भाग में माता वज्रेश्वरी देवी का मन्दिर स्थित है। पौराणिक काल में हिमालय के साथ-साथ पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर समस्त पर्वतीय भू-भाग में पीठ स्थापित कर उन्हें विभिन्न पीठों में बांटा गया। ये पीठ पूर्व में कामाख्या उसके आगे कूर्माचल, केदार, कुलांत,जालंधर और शारदा पीठ हैं। इनमें जालंधर पीठ का केन्द्र बिन्दु भगवती वज्रेश्वरी देवी का मन्दिर है। विपाशा के उस पार हिमालय पर्वत पर्यन्त अड़तालीस कोस में सर्वमान्य जालंधरपीठ है। इस मन्दिर की स्थापना का समय ज्ञात नहीं है लेकिन ग्यारहवीं शताब्दी के आरम्भ में इस मन्दिर की ख्याति चरम सीमा पर थी। इस मन्दिर के बारे में कुछ लोगों का विश्वास है कि जब दक्ष प्रजापति यज्ञ में शिव को अपमानित होते देख सती योगाग्नि में भस्म हो गई थी और इसी योगाग्नि में सती के तेज से वह शक्ति दोबारा प्रकट हो गई ओर वज्रेश्वरी कहलाई ।

    श्री चामुण्डा नंदिकेश्वर धाम

    कांगडा शहर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर जदरांगल गाँव में व्यास की सहायक नदी बनेर खड्ड (बाणगंगा) के दायीं ओर स्थित भगवती चामुण्डा का मन्दिर प्रमुख शक्तिपीठों में गिना जाता है। यह मन्दिर धौलाधार पर्वत शृंखला की गोद में पालमपुर-धर्मशाला मार्ग पर धर्मशाला से 15 किलोमीटर, पालमपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पठानकोट से यहाँ की दूरी 105 किलोमीटर और शिमला से 270 किलोमीटर है। चामुण्डा नंदिकेश्वर धाम को स्थानीय भाषा में चौण्डा नंदिकेश्वर भी कहते हैं। देवी को चामुण्डा चण्ड और मुण्ड दैत्यों का नाश करने के कारण कहते हैं। वाणगंगा के किनारे स्थित इस मन्दिर के घाटों में स्नान करने का भी महत्व है। इसी कारण यहाँ ताल भी बनाया गया है।

    श्री वैद्यनाथ मंदिर, बैजनाथ

    भारत में निर्मित उत्कृष्ट नागर शैली के मन्दिरों की गणना में वैद्यनाथ मन्दिर बैजनाथ भी एक है। इस मन्दिर की निर्माण शैली,शिल्प के कुशल शिल्प का गहरा एहसास दिलाता है। शिल्पी के हुनर ने मन्दिर के हस्तशिल्प को समृद्धता के शिखर तक पहुंचाया है। इस मन्दिर के द्वारमण्डप के सम्मुख प्रांगण में नंदी की विशालकाय प्रतिमा है। यहाँ मन्दिर में हिन्दू देवताओं के भिन्न-भिन्न चित्र उत्कीर्ण हैं। इस मन्दिर की भीतरी दीवारों पर अंकित शिव, गणेश, नवग्रह, दशावतार, दस महाविद्याओं आदि का भव्य अलंकरण हुआ है। इसी प्रकार बाहरी दीवारों पर भी सनातन धर्म के प्रतीक देवी-देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही संजीवता के साथ उकेरा गया है। शिल्पी का यह प्रस्तर शिल्प मन्दिर की शोभा को चार चाँद लगा देता है। चामुण्डा धाम से लगभग 40 किलोमीटर दूर धर्मशाला मण्डी मार्ग पर 9वीं शताब्दी में निर्मित नागर शैली का भगवान शिव को समर्पित बैजनाथ मन्दिर स्थित है। बैजनाथ धाम को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। बैजनाथ का प्राचीन नाम कीरग्राम था।

    महाकाल मन्दिर बैजनाथ

    इस मन्दिर का निर्माण शिल्प शिखर को दर्शाता है लेकिन यह शिखर ढालू छतनुमा शैली में पत्थर की स्लेट से अलंकृत है। इसके शिखर पर आमलक सुसज्जित है। इस मन्दिर के गर्भगृह में शिवलिंग प्रतिष्ठित है। लोक मान्यता है कि यह शिवलिंग स्वयं-भू है। मेले और त्योहारों के अवसर पर यह शिवलिंग घृतमण्डल से सजा दिया जाता है। यहाँ महाकाल मन्दिर के सामने दुर्गा का एक मन्दिर है, जिसमें दुर्गा की प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है। इन दोनों मन्दिरों से लगभग बीस मीटर दूर शनिदेव का एक मंजिला मन्दिर है। इसमें शनिदेव की विकराल श्याम प्रस्तर प्रतिमा है। श्री महाकाल मन्दिर के समीप उत्तर की ओर एक आयताकार जलकुण्ड भी है। यह मन्दिर बैजनाथ से 5 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में स्थित है।

    श्री नयना देवी

    हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्रों में 9वीं शताब्दी के पश्चात् शैव और वैष्णव धर्म के बाद शाक्त धर्म का प्रचलन तीव्र गति से हुआ। शाक्तों द्वारा प्रचलित दक्ष प्रजापति यज्ञ में सती विध्वंस का आख्यान प्रसारित हुआ और यह बात मुख्यतौर से आम लोगों को बताई गई कि शंकर के तिरस्कार से भगवती दाक्षायणी को क्रोध हुआ और फिर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। इसके फलस्वरूप शिव के गणों ने दक्ष यज्ञ का विध्वंस कर दिया। इसका अर्थ निकाला गया कि ईश्वर के तिरस्कार से शक्ति का नाश होता है और शक्ति के नाश होने से सारे कार्य बिल्कुल नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं। दक्ष यज्ञ वाले इस आख्यान में इस स्थान पर सती की आंखें गिरने की जनश्रुति प्रचलित है।

    श्री नयना देवी का प्रसिद्ध मन्दिर जिला मुख्यालय बिलासपुर से 57 किलोमीटर, शिमला से 160 किलोमीटर, चण्डीगढ़ से 108 किलोमीटर तथा आनन्दपुर साहिब से 9 किलोमीटर की दूरी पर है।

    श्री चिन्तपूर्णी देवी

    दक्ष प्रजापति यज्ञ आख्यान में सती के चरण इस स्थल पर गिरने का लोकविश्वास यहाँ प्रचलित है और उसी आधार पर इसे शक्तिपीठ भी माना जाता है। माता के प्रकट होने की एक अन्य जनश्रुति के अनुसार अम्ब तहसील के रपोह मिसरां गांव का एक परम भक्त माईदास को ससुराल जाते हुए यहाँ तनिक नींद आ गई। स्वप्न में एक दिव्य स्वरूपा कन्या ने उसे इस स्थान पर माता की उपासना करने को कहा। ससुराल से वापसी पर उसने यहाँ माता का ध्यान लगाया, तब माता ने प्रकट होकर कहा कि मैं भगवती छिन्नमस्तिका हूँ। माता ने उसे वहीं रहने का आदेश दिया और उसकी जरूरत के लिए पास ही एक जल स्रोत की भी व्यवस्था माता ने कर दी। माईदास ने यहाँ एक मन्दिर बनाया। माता अपने पास आए भक्तों की इच्छा पूर्ण करती है। अतः यह चिन्तपूर्णी देवी के नाम से विख्यात हुई । हिमाचल प्रदेश में माता चिन्तपूर्णी मन्दिर को भी प्रमुख शक्तिपीठों में गिना जाता है। चिन्तपूर्णी मन्दिर जिला मुख्यालय ऊना से 55 किलोमीटर तथा भरवाई कस्बें से 3 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। धर्मशाला से 80 किलोमीटर तथा हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से यहाँ की दूरी 250 किलोमीटर है।

    श्री बाबा बालकनाथ

    यह स्थान उत्तरी भारत का एक दिव्य सिद्ध पीठ है जहाँ प्राचीन काल से सिद्ध बाबा बालकनाथ की एक पवित्र गुफा है। एक लोक धारणा के अनुसार जब नौराणिक शुकदेव मुनि का जन्म हुआ उसी काल में चौरासी सिद्धों ने विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया जिनमें से एक बाबा बालकनाथ जी महान् सिद्ध पुरूष हुए। बाबा जी का मूलतः बालयोगी रूप है। बाबा जी ऋषि अत्रि के पुत्र दत्तात्रेय के शिष्य थे। बाबा बालकनाथ को शिव का अवतार भी माना गया है। जिला हमीरपुर के धौलगिरि पर्वत शृंखलाओं पर बाबा जी के साथ उज्जैन के राजा भर्तृहरि ने काफी सालों तक साधना की थी ऐसा भी लोक विश्वास है। श्री बाबा बालकनाथ धाम दियोटसिद्ध, जिला मुख्यालय हमीरपुर से 45 किलोमीटर दूर है ।

    श्री बाबा बालकनाथ शाहतलाई

    बाबा बालकनाथ दियोटसिद्ध मन्दिर परिसर से यह स्थान लगभग छः किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ पर बाबा जी ने सबसे पहले पदार्पण किया था और एक विशाल वटवृक्ष के नीचे अपनी धूनी रमाई थी। कुछ लोग इनको डकैनण वृक्ष भी कहते हैं। शाहतलाई आने पर बाबा की भेंट रतनों माई से हुई थी। यह वही बुढ़िया माता थी, जिनके पास कैलाश धाम जाते हुए बाबा जी ने द्धापर युग में 12 घड़ी विश्राम किया था। उस ऋण की मुक्ति के लिए बाबा ने 12 साल तक इनकी गाये चराई थीं। शाहतलाई में बाबा जी का एक विशाल मन्दिर परिसर है।

    श्री रामगोपाल मन्दिर

    पठानकोट से लगभग ७-8 किलोमीटर की दूरी पर डमटाल नामक स्थान पर दुर्गनुमा श्री राम गोपाल मन्दिर स्थित है । इस दुर्गनुमा मंदिर की मुख्य डयोढ़ी के पश्चात् मैदान पार करके गोपाल डयोढ़ी है। फिर आध्यात्मिक डयोढ़ी के बाद वटवृक्ष के पास ही बाईं ओर गद्दी मन्दिर तथा ऊपर गुरू निवास है।

    श्री बद्रीविशाल मन्दिर

    बाथू में स्थित बद्रीविशाल का प्राचीन मन्दिर गुलेर के राजा गोवर्धन चन्द द्वारा अपने शासनकाल 1741-1743 के मध्य बनवाया गया था। गोवर्धन चन्द्र के पूर्वज भगवान राम तथा कृष्ण के उपासक थे। 1727-1929 से गुलेर राज्य में वैष्णव भक्ति का प्रचलन हुआ था तथा राजा गोवर्धन चन्द ने बाथू में भगवान कृष्ण का भव्य मन्दिर बनवाया जिसके लिए कुशल कारीगर दक्षिण से भी मंगवाए गए थे। यह मन्दिर उस समय की स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है।

    दुर्वेश्वर महादेव

    श्री दुर्वेश्वर महादेव मन्दिर धर्मशाला छावनी के समीप डलगांव और तिब्बती कालोनी और नड्डी गाँव के मध्य स्थित है। मन्दिर के द्वार तक पक्का रास्ता बना है। मन्दिर में दोनों समय पूजा अर्चना करने के लिए पुजारी मन्दिर में रहता है। इस मन्दिर में मुख्य मेला जन्माष्टमी के 15 दिन बाद राधाष्टमी को लगता है। इस अवसर पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु डल
    झील के पवित्र जल में स्नान करते हैं। इसके अतिरिक्त शिवरात्रि को भी मेला लगता है। मन्दिर के आस-पास के गाँवों की महिलाएं श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को व्रत रख्कर श्री दुर्वेश्वर महादेव की पूजा करती हैं।

    श्री दुर्गा माता मन्दिर, हाटकोटी

    1400 मीटर की ऊँचाई पर शिमला से 104 किलोमीटर दूर शिमला.रोहडू मार्ग पर पब्बर नदी के किनारे हाटकोटी में माता हाटेश्वरी का एक प्रसिद्ध मन्दिर है। प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर ठियोग नामक स्थान से दाहिनी ओर मुड़कर छैला-गुम्मा-कोटखाई आदि स्थानों से होकर हाटकोटी पहुँचा जा सकता है। हाटकोटी माता का मन्दिर अपने मूल रूप में शिखर शैली में था। जुब्बल के राजा पद्मचन्द्र ने सन् 1885 में इसका पुनर्निमाण करवाया। अब यह मन्दिर दो छत वाले पैगोड़ा जैसा दिखाई देता है। मन्दिर की बाह्य दीवारें तराशे हुए पत्थरों से निर्मित हैं। गर्भगृह के शिखर पर पैगोड़ानुमा छत है जिसका शीर्ष आमलक से सुसज्जित है। गर्भगृह के चारों ओर मण्डप बना है । इस मन्दिर में सिंह वाहिनी महिषासुरमर्दिनी की अष्टभुजा युक्त तोरण से सुसज्जित 1.22मीटर ऊँची एक अष्टधातु की मूर्ति है। इतनी बड़ी धातु प्रतिमा प्रदेश के किसी अन्य मन्दिर में नहीं है।

    श्री हनुमान मन्दिर जाखू

    शिमला शहर के रिज मैदान से श्री हनुमान मन्दिर दो किलोमीटर दूर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। शहर की सबसे ऊँची यह चोटी समुद्रतल से 2400 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है तथा शिमला का एक रमणीक पर्यटन स्थल है। स्थानीय लोग इसे जाखू का टिला भी कहते हैं। इस मन्दिर को जाखू मन्दिर के नाम से भी जानते हैं। रिज मैदान से मन्दिर के लिए चढ़ाई वाला रास्ता है जो कि अधिकतर देवदार के पेड़ों से घिरा है। पैदल रास्ते में बीच-बीच में बन्दरों का समूह मिलना आम बात है। लोक विश्वास है कि जाखू पर्वत, जाखू अथवा यक्षों का निवास स्थान रहा है। यहाँ हनुमान के चरण कमल पड़े थे। जब वह संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे।

    श्री दुर्गा मन्दिर, शराई कोटी

    हिन्दुस्तान-तिब्बत राष्ट्रीय उच्चमार्ग पर स्थित नोगली नामक स्थान से लगभग 45 किलोमीटर दूरी पर समुद्र तल से 3000 मीटर ऊँची शराईकोटी की चोटी पर दुर्गा माता का मन्दिर स्थित है। इस मन्दिर की मान्यता न केवल रामपुर बुशैहर में ही है अपितु माता का दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहाँ आते हैं। लोक विश्वास है कि यहाँ माता दुर्गा की स्थापना आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व हुई। कुछ स्थानीय लोग ऐसा भी मानते हैं कि मूल रुप से माता दुर्गा पहले कावबील नामक स्थान पर निवास करती थी और कालान्तर में उन्होंने शराई कोटी पहाड़ी की इस चोटी को पसन्द किया। देवी के कावबील में रहने के प्रमाण में लोग कहते हैं कि आज भी कावबील में माता की बहिन मौजूद है। शराई कोटी परिसर सुन्दर एवं रमणीय स्थल है जो अपनी सुन्दरता से पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ पर दूर तक जैसे पहाड़ तथा उन पर जमी बर्फ मनमोहक नजारा प्रस्तुत करती है।

    मन्दिर श्री भीमाकाली

    शिमला से लगभग 180 किलोमीटर दूर 2150 मीटर की ऊँचाई पर सराहन में तत्कालीन बुशैहर रियासत के राजवंश की कुलदेवी श्री भीमाकाली का एक प्रसिद्ध मन्दिर है, जो अब एक सार्वजनिक देवस्थान है। शोणितपुर इसकी राजधानी रही है। शोणितपुर को अब वर्तमान सराहन से जोड़ा जाता है। हिन्दुस्तान तिब्बत मार्ग के दाहिनी ओर पहाड़ों की गोद में स्थित यह मन्दिर पुरातत्ववेताओं के अनुसार सम्भवतः सातवीं-आठवीं शताब्दी के बीच का है। रेल वायुयान से सफर करने वाले श्रद्धालुओं को प्रदेश की राजधानी, शिमला से यहाँ तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग की यात्रा करनी पड़ती है।

    श्री अयोध्यानाथ मन्दिर

    यह मन्दिर रामपुर में स्थित है। यह स्थान शिमला से लगभग 130 किलोमीटर की दूरी पर है। मन्दिर की स्थापना के बारे में यह माना जाता है कि महाराजा उदय सिंह के पुत्र महाराजा राम सिंह ने इस मन्दिर की स्थापना की थी। उन्हीं के नाम पर इस कस्बे का नाम रामपुर पड़ा है। उन्होंने विक्रमी संवत् 1824.56 तक शासन किया था। जनश्रुति के अनुसार महाराजा राम सिंह का विवाह अयोध्या से हुआ था । जहाँ से उनकी रानी श्रीराम जी की मूर्ति लेकर आई थी। इस उपलक्ष्य में राजा राम सिंह ने मन्दिर बनाया बनवाया था।

    श्री दत्तात्रेय मन्दिर

    रामपुर के दुतनगर में पहाड़ी शैली से बना भगवान दत्तात्रेय का मन्दिर है। मन्दिर की तिकोनी छत ढलवां है और इसका ढांचा आयताकार है। इसकी छत स्लेटों से ढकी हुई है। छत के शीर्ष भाग पर लकड़ी का धरण टिकाया गया है। छत के चारों किनारों पर काष्ठ झालर भली-भांति सजाई गई है। मन्दिर के गर्भगृह में भगवान दत्तात्रेय, माता अनुसूया तथा ऋषि अत्रि की ताम्र प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं जो लगभग एक मीटर ऊँची हैं। भगवान दत्तात्रेय सती अनुसूया और प्रजापति अत्रि के पुत्र थे। इस दम्पति के दत्तात्रेय के अतिरिक्त दो अन्य पुत्रों को भी संतों का दर्जा हासिल है।

    श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर

    चम्बा शहर में स्थित राजमहल के उत्तर की ओर एक ही स्थान पर लक्ष्मी नारायण नाम से प्रसिद्ध 6 देवालयों का एक मन्दिर समूह है, जिसमें 3 मन्दिर विष्णु को और तीन मन्दिर शिव को समर्पित हैं। यह सभी मन्दिर एक पंक्ति में उत्तर से दक्षिण की ओर क्रमशः लक्ष्मी नारायण, राधाकृष्ण, चन्द्रगुप्त महादेव, गौरीशंकर, त्रयम्बकेश्वर व लक्ष्मी दामोदर को समर्पित हैं। सभी मन्दिर शिखर शैली में निर्मित है और इन पर प्राचीन गुप्त शैली का प्रभाव है।

    श्री देई साहिबा मन्दिर

    पौंटा साहिब में भगवान राम और उनकी अर्द्धांगिनी सीता का एक खूबसूरत मन्दिर है। इसकी दीवारों पर कांगड़ा शैली के भित्ति चित्र बड़ी खूबसूरती से उकेरे गए हैं जिनका प्रमुख विषय पौराणिक कथानक हैं। यह स्थान चण्ड़ीगढ़ से लगभग 90 किलोमीटर दूरी पर है ।

    श्री महामाया बालासुन्दरी मन्दिर

    दिव्य स्वरूपिणी भगवती देवी जगत् कल्याणार्थ अपने अद्भुत कर्मों से अनेक रूपों से पूजित हुई हैं। कई स्थानों पर देवी का बाल सलोना मनमोहिनी रूप भी महामाया बालासुन्दरी के नाम से पूज्य बना है। महामाया का एक ऐसा ही सुप्रसिद्ध पूज्य स्थल हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिला के त्रिलोकपुर गाँव में है। जनश्रुति के अनुसार महामाया पिंडी रूप में नमक की बोरी में उत्तर प्रदेश से आयी थी

    मन्दिर अधिनियम

    • हिमाचल प्रदेश हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं पूर्त विन्यास अधिनियम, 1984
    • हिमाचल प्रदेश हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं पूर्त विन्यास (संशोधन ) अधिनियम, 2007
    • हिमाचल प्रदेश हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं पूर्त विन्यास (संशोधन ) अधिनियम, 2010
    • हिमाचल प्रदेश हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं पूर्त विन्यास (संशोधन ) अधिनियम, 2011
    • हिमाचल प्रदेश हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं पूर्त विन्यास (संशोधन ) अधिनियम, 2018
    • हिमाचल प्रदेश हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं पूर्त विन्यास (संशोधन ) नियम, 1984

    मंदिर न्यास संगठनात्मक तालिका

    क्रम पदनाम कार्य
    1 मुख्य आयुक्त (मंदिर) (सचिव भाषा एवं संस्कृति हिमाचल प्रदेश सरकार ) सम्पूर्ण राज्य के लिए इस अधिनियम के अधीन या द्वारा उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करनेऔर सौंपे गए कृत्यों का पालन
    2 अतिरिक्त मुख्य आयुक्त(मंदिर) ( निदेशक, भाषा एवं संस्कृति हिमाचल प्रदेश ) सम्पूर्ण राज्य के लिए विहित शक्तियों का प्रयोग कृत्यों का पालन
    3 आयुक्त(मंदिर) (संबंधित जिला के उपायुक्त) सम्पूर्ण जिला के लिए निहित शक्तिया का प्रयोग कृत्यों का पालन
    4 संयुक्त आयुक्त(मंदिर)(उपमण्डलाधिकारी (ना0) या अन्य अधिकारी) सम्पूर्ण मण्डल के लिए विहित शक्तियों का प्रयोग कृत्यों का पालन
    5 सहायकआयुक्त(मंदिर) (संबंधित जिला भाषा अधिकारी या अन्य अधिकारी) सम्पूर्ण जिला के लिए निहित शक्तियों का प्रयोग कृत्यों का पालन
    6 मंदिर अधिकारी(तहसीलदार या समतुल्य अधिकारी) ] मंदिर कार्य की देख रेख हेतु
    7 सहायक मंदिर अधिकारी सम्बधित मंदिर न्यास के कार्य में मंदिरअधिकारी को सहयोग

    अधिगृहीत मंदिर सूची

    हिमाचल सरकार द्वारा अधिगृहित मंदिरों की सूची

    क्रमांक हिमाचल प्रदेश हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक एवं पूर्तविन्यास संस्थान का नाम जिला अधिसूचना की तिथि अधिग्रहण की तिथि
    1 श्री नैना देवी मंदिर, नैना देवी बिलासपुर 16-11-1984 17-12-1985
    2 श्री शाहतलाई  मंदिर समूह
    (i) मुख्य मंदिर बाबा बालक नाथ, शाहतलाई
    (ii) द्वितीय मंदिर बाबा बालक नाथ, शाहतलाई
    (iii) मंदिर वट वृक्ष, शाहतलाई
    (iv) मंदिर गुरना झारी, शाहतलाई
    (v) शिव मंदिर बछरेटु, तह० झण्डूता
    बिलासपुर 29-06-1993 30-06-1993
    3     बिलासपुर  मंदिर समूह
    (i) श्री  हनुमान मंदिर, दियारा
    (ii) श्री  लक्ष्मी नारायण मंदिर, दियारा
    (iii) श्री  बाबा नाहर सिंह, धोलेरा मंदिर, बिलासपुर
    (iv) श्री  महर्षि वेद व्यास गूफा मंदिर
    बिलासपुर 12- 06- 2005 20-06-2005
    4 महर्षि श्री मार्कंडेय मंदिर, मकरी (मार्कंड) और शिव मंदिर, मकरी, तहसील सदर बिलासपुर 25-05-2017
    5 लक्ष्मी नारायण मंदिर चंबा 16-11-1984 17-12-1985
    6  श्री  मणिमहेश, भरमौर चंबा 19-03-2007 30-08-2007
    चौरासी मंदिर, भरमौर  समूह
    (i) हर हर महादेव मंदिर, मणिमहेश
    (ii) गणपति मंदिर
    (iii) धर्मेश्वर महाराज मंदिर
    (iv) लखना माता मंदिर
    (v) नरसिंह महाराज जी मंदिर
    (vi)  भरमणी माता मंदिर, मलकुटा
    (vii)महाकाली माता मंदिर, बन्नी, सरौथा
    (viii) शिव मंदिर मणिमहेश,धार, हेग
    चंबा 25-05-2015
    7 बाबा बालक नाथ मंदिर, दयोटसिद्ध हमीरपुर 16-11-1984 16-01-1987
    8 सेवा भारती शनिदेव मंदिर, सरली, हमीरपुर 04-03-2016 08-04-2016
    9 ज्वालामुखी मंदिर ज्वालाजी, जिला कांगड़ा कांगड़ा 16-11-1984 16-01-1987
    (1) श्री टेढ़ा मंदिर ज्वालाजी, जिला कांगड़ा कांगड़ा 24-09-1984
    10 श्री राम गोपाल मंदिर, डमटाल कांगड़ा 16-11-1984 03-01-1996
    11 बज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा 16-11-1984 04-11-1986
    12 i) श्री बद्री विशाल वाया अटेरियन
    (ii) श्री नर सिंह मंदिर, नगरोटा सूरियां
    कांगड़ा 29-12-1988 29-12-1988
    13  श्री अष्ट भुजा माता मंदिर,बोहन, ज्वालामुखी, तहसील देहरा गोपीपुर कांगड़ा 29-06-1993 29-06-1993
    14 (i)श्री चामुंडा नंदिकेश्वर मंदिर कांगड़ा 24-02-1994 04-03-1994
    (ii) माँ श्री आदि हिमानी, चामुंडा मंदिर जिला कांगड़ा कांगड़ा 31-03-2011
    15 (i) दुर्वेश्वर महादेव मंदिर
    (ii) भागसू नाग मंदिर,धर्मशाला
    कांगड़ा 12-12-1997
    16  बैजनाथ उप मंडल के मंदिर
    (i) श्री शिव मंदिर, बैजनाथ
    (ii) श्री महाकाल मंदिर, महाकाल, बैजनाथ
    कांगड़ा 09-03-2006 29-04-2006
    17 श्री  काली नाथ कालेश्वर मंदिर रक्क्ड़ कांगड़ा 02-08-2018
    18 भगवान श्री त्रिलोकीनाथ मंदिर उदयपुर, लाहौल स्पीति लाहौल स्पीति 16-03-2016 18-06-2016
    19 हणोगी माता मंदिर, हंगोई, उप तहसील,ओट मंडी 03-10-2006 09-12-2006
    20 श्री नबाही देवी मंदिर सरकाघाट मंडी** मंडी 23-03-2007 28-3-2007
    21 श्री महामृत्युंजय मंदिर, मंडी सदर मंडी 02-04-2016
    22 श्री नीलकंठ महादेव मंदिर कण्डापतन, त० धर्मपुर मंडी 04-12-2020
    23 तारा देवी  मंदिर, तारा देवी, शिमला शिमला 16-11-1984 12-03-1987
    24 भीम काली मंदिरों का समूह
    (i) श्री भीमा काली जी मंदिर, सराहन
    (ii)   श्री रघुनाथ जी
    (iii)  श्री नर सिंह जी,
    (iv)  श्री ल॑कडा देवता ज़ी
    (v)   श्री दुर्गा माता मंदिर (कंरांगला माता )
    शिमला 4-12-2015
    25 श्री हनुमान मंदिर जाखू शिमला 16-11-1984
    26  दुर्गा माता मंदिर,हाटकोटी, शिमला 16-11-1984 16-11-1984
    27 रामपुर बुशहर, जिला शिमला में स्थित मंदिर समूह
    (i)  श्री अजोधय नाथ मंदिर
    (ii)  बोध मंदिर (धूमगीर)
    (iii) जानकी माता गुफ़ा मंदिर
    (iv) रघुनाथ जी बड़ा अखाड़ा / लंबू अखाड़ा
    (v)  नरसिंह जी मंदिर
    शिमला 03-05-1985 03-05-1985
    28 दत्तात्रेय स्वामी मंदिर,दत्तनगर,शिमला शिमला 30-05-1985 03-05-1985
    29 दुर्गा मंदिर, शारई कोटि, तहसील रामपुर शिमला 30-03-1987 04-11-1989
    30 श्री संकट मोचन मंदिर, तारादेवी, शिमला शिमला 05-08-2004 16-08-2004
    31 ठाकुर द्वारा देई जी साहिबा, पोंटा सिरमौर 27-07-1989 15-11-1989
    32 श्री महामाया बालासुंदरी जी, त्रिलोकपुर मंदिर सिरमौर 22-05-2002 22-05-2002
    33 श्री शूलनी माता मंदिर, सोलन सोलन 02-08-2005 04-10-2005
    34  श्री चिंतपूर्णी मंदिर,चिंतपूर्णी ऊना 16-11-1984 12-06-1987
    35 श्री महाशिव मंदिर शिवबाड़ी (अंबोटा) ऊना 26-02-2014
    36  श्री सदा शिव महादेव मंदिर ,ध्युनसर, जिला ऊना ऊना 02-08-2018

    हिमाचल प्रदेश सरकार के गौ सदन सम्बन्धी आदेश / दिशा निर्देश

    गौ सदन सम्बन्धी दिशा निर्देश
    गौ सदन सम्बन्धी आदेश

    प्राय: पूछे गए प्रश्न

    किन मंदिरों को सरकार द्वारा अधिगृहित किया जा सकता है?

    हिमाचल प्रदेश हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्थाएवं पूर्त विन्यास अधिनियम 1984 की धारा-29, के अधीन हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्था एवं पूर्त विन्यास को अधिगृहित किया जा सकता है अथवा अधिग्रहण समाप्त किया जा सकता है।

    क्या सिख गुरूद्वारों पर भी यह अधिनियम लागू होगा?

    इस अधिनियम की धारा-33 के अनुसार जो गुरूद्वारे ‘‘सिख गुरू अधिनियम 1925’’ के अधीन है, उनको इस अधिनियम में नहीं लिया जा सकता है।।

    इस अधिनियम में गोसदनों के लिए क्या प्रावधान है?

    गोसदनों के नियमित रख-रखाव और इसका स्तरोन्नयन करने के या गोवंश संवर्द्धन के लिए प्रत्येक मंदिर न्यास से 15 प्रतिशत राशि रखी जाती है।

    न्यासियों की नियुक्ति किस द्वारा की जाती है?

    इस अधिनियम की धारा-18 के अधीन न्यासियों की नियुक्ति आयुक्त(मंदिर) द्वारा की जाती है व अधिकतम न्यासी 25 हो सकते हैं, न्यास का कार्यकाल 5 वर्ष है।

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