परिचय

निष्पादन कला भाषा एवं संस्कृति विभाग का एक प्रमुख प्रभाग है। हिमाचल प्रदेश की समस्त निष्पादन कलाएं समग्र रूप से अपनी लोक परम्पराओं, लोकगीतों, लोकनाट्यों, लोक गाथाओं एवं अनेक श्रुति तथा स्मृति परम्पराओं को समाहित किए हुए है। हिमाचल प्रदेश की लोक संस्कृति को जीवित रखने के लिए विभाग खण्ड, जिला, राज्य, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न लोक संस्कृति के आयोजनों के माध्यम से न केवल इस को समृद्ध कर रहा है अपितु इसके उन्नयन हेतु प्रयासरत है। प्रदेश की लोककलाओं के संवर्द्धन हेतु समय-समय पर लोकगीतों, लोकनाट्यों के प्रदर्शन स्वैच्छिक संस्थानों के माध्यम से प्रतिमास जिला एवं प्रादेशिक स्तर पर हो रहे हैं। यह समस्त आयोजन निष्पादन कलाओं के साथ साहित्यिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक तथा धार्मिक परिपेक्ष्यों पर भी आधारित हैं।

लोकगीत

लोकगीत, लोक जीवन से जुड़े है । लोक गीतों में हमारी भावनाएं और संवेदनाएं संगीतमय रुप से प्रतिध्वनित होती हैं । लोकगीत समाज की प्रकृति, वातावरण और परिस्थितियों को दर्शाते है । लोकगीत मानव जीवन की रंगीनियों तथा समाज की कठोर वास्तविकताओं का भी प्रतिनिधित्व करते है । लोकगीतों का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत एवं व्यापक है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं होगा, जहाँ के लोकगीतों ने समाज के किसी वर्ग को छोड़ा होगा । प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में लोक गीत गाए जाते हैं, जो कि पारम्परिक, सौन्दर्य युक्त तथा दैविक व संस्कारों से जुड़े गीत होते हैं, हिमाचल प्रदेश में पुराने लोकगीतों की परम्परा है जैसे कि कुंजड़ी, मलहार, घुरेई, सुकरात, तिल चोली, चुराही, झूरी भौंरू, हार-वार, साका, पडुआ, पंजड़ा, मोहना, वामणा रा छोरू, लोका, गंगी, भ्यागड़ा, बारामासा, भजन गायन, तुंबा गायन, मुसादा गायन इत्यादि। इसके अतिरिक्त संस्कार गीत भी हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में लोक परम्पराओं तथा रीति-रिवाजों के अनुसार गाये जाते हैं। भक्ति रस गीत भी प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित हैं, जैसे रामायण, भर्तृहरि, वरलाज, भगतरास, गुग्गा गाथा, विशु इत्यादि । 

हिमाचल प्रदेश की लोकनृत्य विधाएं

हिमाचलवासियों का जन-जीवन अत्यन्त साधारण एवं उल्लास पूर्ण होता है। यहां के विभिन्न भागों में लोकनृत्य अपने-अपने विभिन्न स्वरूपों में, वहां की परिस्थितियों एवं संस्कृति के अनुरूपों को दर्शातें है। लोकनृत्य में अवसर चाहे कोई भी हो, पहाड़ के लोग स्त्री-पुरूष, जवान- बूढ़ें तथा बच्चे अपने-अपने पारम्परिक वाद्ययंत्रों की धुनों पर लोकगीतों को गाकर झूमने व नाचने लगते हैं । हिमाचल प्रदेश की ‘नाटी’ विश्व प्रसिद्ध हैं । हिमाचल प्रदेश के शिमला, कुल्लू, किन्नौर, लाहौल-स्पिति, सिरमौर तथा मण्डी के कुछ क्षेत्रों में भी नाटी का प्रचलन है । मुख्यरुप से नाटी मेले, त्यौहारों, उत्सवों एवं अन्य मांगलिक कार्यों पर मनोरंजन की दृष्टि से की जाती है । जिन जिलों में नाटी का प्रचलन हैं, उनमें से नाटी नाचने का ढंग कुछ में मिलता जुलता है, और कुछ में भिन्नता देखने को मिलती है ।

किन्नौरी लोक-नृत्य किन्नौर मे लोक नृत्य के तीन रूप अधिक प्रचलित है। इसमें क्यांग, वक्यांग और बनियांगचू लोक नृत्य अधिक लोकप्रिय है। 

इस प्रकार लोक नृत्य तथा गीत भी प्राचीन तथा स्थानीय देव कथाओं पर आधारित होते हैं। इस प्रकार वक्यांग, वोन यांगचू ,लामा जापरो लोक नृत्य, जातरू, क्यांग नृत्य, चंगर नृत्य, छम लोक नृत्य इत्यादि किन्नौर के लोक नृत्य प्रचलित है। 

कुल्लू के लोक नृत्य कुल्लू निवासियों का कोई भी पर्व तथा त्योहार लोक नृत्य, लोक संगीत, नाचते-गाते, खेल-तमाशों के बिना सम्पन्न नहीं होता। प्राकृतिक तौर पर समूचा कुल्लू अत्यन्त मनोहर और समृद्ध स्थल है। कुल्लू नाटी और सिराज के मेलों की एक अलग पहचान है। यहाँ के लोक नृत्य को कुल्लू नाटी भी कहते हैं। कुल्लवी परिधान में अपनी अनुठी पहचान होने के कारण वाद्य-यन्त्रों की लय और शहनाई की धुन पर जब कुल्लूई संगीत प्रारम्भ होता है तो नाचने वाला अनायास दिल की मस्ती में झूम-झूम कर नाचने लगता है। कुल्लू के लोक नृत्य में आध्यात्मिक और दैविक अनुभूति भी देखने को मिलती है। कुल्लू टोपी में फूल, गले में फूलों के हार लोक नृत्य में स्त्रियां कान में फूल लगाकर लोक गीत गाकर कुल्लूई लोक नृत्य करते हैं। 

कुल्लू के लोक नृत्य सात प्रकार के होते हैं। कुल्लू लोक नृत्य में न ही नर्तक दल की कोई संख्या निर्धारित होती है और न ही हर बार विशेष वेश-भूषा पहनते हैं। नाटी कई प्रकार से नाची जाती है। जब इस नृत्य को नर्तक धीमी ताल से नाचते हैं तब उसे ढीली नाटी कहते है, तीव्र गति से नाचने पर उसे “रूंझाका” कहते हैं। जब दल नाचते-नाचते दो पंक्तियों में बंटते हैं तो उसे “दोहरी नाटी” कहते हैं। लालड़ी नृत्य भी कुल्लू का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह नृत्य स्त्रियों द्वारा अधिकतर देवता के मन्दिरों में नाचा जाता है। इसी प्रकार से कुल्लू में हरण नृत्य, तलवार नृत्य करथी नृत्य, देऊ खेल, फागली नृत्य इत्यादि प्रचलित है।

शिमला क्षेत्र के लोक नृत्य शिमला क्षेत्र में खंजरी, डमरू, नगाड़ा, ढोलक, शहनाई, करनाल और नरसिंहा प्रमुख वाद्यन्त्र है। इन क्षेत्रों के लोक नृत्यों में ढीली नाटी, फूकी नाटी, माला नाटी, घुगती नाटी, तुरिण ठोडा, मुंजरा इत्यादि प्रचलित है। नर्तक दल के आरम्भ में नाचने वाले को धूर का नर्तक कहते हैं। फूकी नाटी में नर्तक दल आधा दायरा बनाकर खड़े होकर नाचते हैं और एक नर्तक दूसरे नर्तक को नहीं छूता है। 

माला नृत्य बहुत ही लोक प्रिय नृत्य है। यह प्रत्येक उत्सव, त्यौहार, विवाह, देव यज्ञ और मेलों में सांझ के समय प्रदर्शित किया जाता है। इसमें नृर्तक एक दूसरे की कमर पर हाथ रखकर माला बनाते हुए लोक गीत गाकर नृत्य करते हैं। मुंजरा नृत्य- शिमला के अधिकतर क्षेत्रों में मुंजरा नृत्य का भी प्रचलन है। यह नृत्य घर के बाहर खुले में तथा घरों के अन्दर भी किया जाता है। 

सिरमौर के लोक नृत्य सिरमौर के लोग सादा जीवन कठिन परिश्रम शांतिप्रिय और धार्मिक निष्ठा से जुडे़ है वर्ष भर के कठिन जीवन में सरसता लाने के लिए समय-समय लोक गीत, लोक धुन और नृत्य इस क्षेत्र के प्रमुख लोक मनोरंजन का साधन है। इस क्षेत्र में लोकनृत्यों में अधिकतर पुरूष ही नाचते है, कहीं-कहीं स्त्रियाँ भी नृत्य करती हैं। सिरमौर के नृत्यों में गीह, नाटी, रथेवला, रासा, स्वागटे इत्यादि मुख्य है। इनके अतिरिक्त अन्य पहाड़ी लोक नृत्य भी बडे चाव से प्रदर्शित किये जाते हैं। गीह नृत्य ढोलक, खंजरी, खड़ताली वाद्य यंत्रों की लय पर नृत्य किया जाता है। इस नृत्य में पाँच तालियाँ लगती हैं। गीह को मुंजरा भी कहते हैं। मुंजरा विशु, देवयज्ञ, रिहाली, शादी इत्यादि अवसरों पर शाम से सुबह तक यह नृत्य किया जाता है। गीह गायनटी मुख्य नृत्य होता है। गीह नृत्य में नर्तक गाने वाले के मध्य में नाचता है। 

लाहौल स्पिति के लोक नृत्य लाहौल-स्पिति में लोक गीत, लोक नृत्य साथ-साथ चलते है। मुख्य रूप से यहाँ के नृत्य दो प्रमुख रूपों में प्रदर्शित होते है -एक है लोक रूप और दूसरा धार्मिक रूप जो कि बौद्ध विहारों में ही होता है। शैनि और शब्बू लोक नृत्य को अधिकतर बौद्ध विहारों में ही भगवान बुद्ध की प्रतिमा के सामने प्रदर्शित किया जाता है। यह पूर्ण रूप से धार्मिक है। इसके साथ कोई भी संगीत नहीं बजाया जाता केवल नगाड़ा और बांसुरी ही बजाते हैं। शब्बू नृत्य एक सामाजिक नृत्य है। यह नृत्य बौद्ध मठों के बाहर सामाजिक उत्सवों में प्रदर्शित किया जाता है। नृत्य की गति धीरे-धीरे तीव्र होती जाती है। लाहौल-स्पिति में जोमे नृत्य स्त्रियों का प्रिय नृत्य है। स्त्रियाँ एक दूसरे का हाथ पकड़ कर नृत्य करती है। छम नृत्य- यह धार्मिक नृत्य है और बौद्ध गोम्पा में प्रदर्शित किया जाता है। नर्तक बार-बार एक ही शैली में नाचते हैं। इस नृत्य में लामा लोग ही भाग लेते हैं। नर्तक चमकीले और भड़कीले वस्त्र-आभूषण पहन कर जानवरों, पक्षियों और प्रेतों के चमकीले मुखौटे पहनते हैं। नर्तक विभिन्न प्रकार के आठ मुखौटे पहनते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य नृत्य के प्रकार भी लाहौल-स्पिति में जैसे की -ग्रीफी नृत्य, शौन नृत्य, शीनी नृत्य, छोपड़ा नृत्य, गरे नृत्य, जबरू नृत्य इत्यादि प्रचलित है। 

लुड्डी नृत्य लुड्डी नृत्य मण्डी क्षेत्र के समतल क्षेत्रों में किया जाने वाला लोकनृत्य है । लुड्डी का मतलब लुड़कना अर्थात् लोट–पोट होकर नृत्य करना। यह नृत्य महिला एवं पुरूष द्वारा पारम्परिक वेश–भूषा पुरुष सिर पर पगड़ी, चोला, पजामा तथा महिला कलाकार मलमल के चोलू, चूडीदार पायजामी तथा दुपट्टा व पारम्परिक आभूषण पहनकर लोकवाद्य यन्त्र की धूनों तथा लोकगीत गाकर लुड्डी नृत्य करते हैं । 

घुरेई नृत्य मुख्य रूप से मेले जिसे जातर भी कहते हैं । चैत्र महीने में माता सुनैना की याद में पूरे महीने भर में केवल महिलाओं द्वारा चम्बा स्थित सूही माता मंदिर में अपने पारम्परिक वेश–भूषा, लोकगीतों को महिलाओं द्वारा गाये जाने पर लोकवाद्य यंत्रों की धुनों पर घुरेई नृत्य मुख्य रूप से चम्बा में किया जाता है । डंडारस नृत्य यह लोकनृत्य चम्बा के भरमौर क्षेत्र में किया जाने वाला नृत्य है । यह नृत्य लोकवाद्य यन्त्र नगाडा, रणसिंघा, काहल, बांसुरी, इत्यादि वाद्य यंत्रों की ताल पर पारम्परिक वेश–भूषा पहन कर करते हैं । डंडारस नृत्य डंडे से खेलने वाला नृत्य है। 

गद्दी नृत्य यह नृत्य चम्बा के गद्दी जनजाति के लोगों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में महिला एवं पुरुष अपने पारम्परिक वेश–भूषा के परिधानों में सुसज्जित हो कर नृत्य करते हैं । यह नृत्य मेले, त्यौहारों एवं अन्य मांगलिक उत्सवों पर किया जाता है । 

गिद्धा पडुआं यह नृत्य सोलन, बिलासपुर, कांगड़ा, ऊना, मण्डी, हमीरपुर इत्यादि क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा मुख्य रुप से विवाह शादियों तथा अन्य मांगलिक कार्यों के आयोजनों में किया जाता है। पंजाब में भी गिद्धा प्रचलित है, परन्तु प्रदेश का गिद्धा पंजाब से भिन्न है । यह नृत्य अर्द्धचन्द्राकार में किया जाता है । अधिकतर यह नृत्य विवाह परम्परा से जुड़ा है, जब बारात वधु के घर चली जाती है तो उसके पश्चात् घर की स्त्रियां घर पर पडुआं नृत्य करती हैं । 

झमाकड़ा झमाकड़ा नृत्य प्रदेश के निचले क्षेत्रों जैसे– कांगड़ा, हमीरपुर,बिलासपुर इत्यादि में किया जाने वाला नृत्य है । इस नृत्य का प्रचलन जिस समय बारात वधू के द्वार पर आ पहुंचती है, उस समय गांव की महिलाएं पारम्परिक वेश–भूषा में,घघरी, कुर्ता, चुड़ीदार पायजामा तथा आभूषण में चांदी का चोक, कण्ठहार, चन्द्रहार, नाक में नथनी, पैरों में पायजेब पहन कर बारात का स्वागत करते लोक गीतों में उन्हें मीठी–मीठी गाली, सिठनियां, हंसी–मजाक कर झमाकड़ा लोकनृत्य करती हैं । इस नृत्य में ढोलक, बांसुरी, खंजरी इत्यादि लोक वाद्य यन्त्र शामिल किये जाते हैं । 

मुखौटा नृत्य यह नृत्य जनजातीय क्षेत्र किन्नौर तथा लाहौल–स्पिति में किया जाता है । इस नृत्य में देवताओं तथा पशुओं के मुखौटे पहनकर स्थानीय ताल पर पौराणिक एवं पारम्परिक सन्दर्भों का प्रयोग कर इन्हें नृत्य शैली में प्रस्तुत करते हैं । 

हिमाचल प्रदेश के लोकनाट्य

हिमाचल प्रदेश अपनी कलाप्रियता और धार्मिक आस्था की गहनता के कारण पहाड़ी जनमानस का समस्त जीवन मनोरंजन से भरपूर है। लोक रंगमंच हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण जीवन का एक अभिन्न अंग है। हर त्यौहार, मेले और समारोह को नृत्य, गायन, संगीत और नाटकीयता सहित लोक प्रदर्शन के साथ मिश्रित किया जाता है। हालांकि धीरे.धीरे बदलते और समय के साथ अप्रचलित होते हुए, यह प्राचीन विधा इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है। ये नाटक मिथकों, किंवदंतियों, इतिहास, धर्म, संस्कृति, शिष्टाचार और लोगों के मेल पर आधारित हैं। यद्यपि वर्तमान समय में लोक रंगमंच भी राम लीला और कृष्ण लीला को शामिल करता है, लेकिन पुराने रूप अभी भी अपनी लोकप्रिय अपील को बरकरार रखते हैं। लोक रंगमंच शासकों और शासितों को सही संदेश देने का सशक्त माध्यम था। यहां लोक नाट्य के अनेक रूप प्रचलित है जो विचित्र शैलियों में प्रदर्शित होते हैं। इनमें से कुछेक प्रसिद्ध लोक–नाट्यों का केवल संक्षेप में यहां विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है।

ठोडा ठोडा हिमाचल प्रदेश के युद्ध परंपरा से जुड़ा लोक नाट्य है। यह लोकनाट्य शिमला, सिरमौर तथा सोलन में नाटी के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है। ठोडा महाभारत युद्ध की याद ताजा करता है। यह खेल बैशाखी के दिन से लेकर श्रावण के अंत तक ग्राम देवता मंदिर के सामने खुले आंगन या समतल खुले स्थानों पर खेला जाता है। स्थानीय जनुश्रुति के अनुसार कौरवों की संख्या सौ नहीं साठ थी इसलिए उन साठ की संतान को शाठा कहते है। पाण्डव पांच ही थे उनके वंशज पाठा या पाशा कहलाते है। शाठी लोग पाशी को खेल के लिये बुलाते थे तो दोनों दल अपने आराध्य देवता की पूजा के पश्चात् फारसो, डंडों, गडासों, धनुष–बाण और तलवारों से आपस में ठोडा खेल खेलते है। 

बांठडा लोकनाट्य बांठडा का प्रचलन अधिकतर मण्डी तथा उसके आसपास के क्षेत्र में है। किसी समय बांठडा राजमहलों का लोकनाट्य था । बांठडा के आरम्भ में शिव, गणपति और सरस्वती की पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त जहां बांठडा किया जा रहा है वहां स्थानीय देवता की अराधना भी की जाती है। इसमें रांझू–फूलमू, कुंजू–चंचलों, राजा–गद्दन आदि की लोक कथाएं भी की जाती है । इसके अतिरिक्त बांठडे में लोकनाट्य जैसे– राजा हरिश्चंद्र, शिव-पार्वती, पूर्ण भक्त इत्यादि भी प्रस्तुत किए जाते है। 

हरण प्रदेश के अधिकतर क्षेत्रो में प्रस्तुत किया जाने वाला हरण नृत्य चम्बा में हरणातर, किन्नौर में हौरिंगफों और कुल्लू में होरण के नाम से जाना जाता है । इस लोक नाट्य के दो पक्ष होते है एक नृत्य पक्ष और दूसरा स्वांग पक्ष, नृत्य में तीन पात्र, हरण, बूढ़ी और कान्ह अपने पारंपरिक वेश भूषा में हिरण का रूप तैयार करके खलिहान में नृत्य करते है। नृत्य के उपरांत स्वागीं पक्ष प्रवेश करता है जो कि स्वागीं मुंह पर कई रंग और कई प्रकार के मुखौटे पहने होते हैं। ढोल नगाडे आदि धुनों पर सामाजिक परिवेश में घटित घटनाओं, समस्याओं सामाजिक बुराईयों तथा हास्य व्यंग्यों को जोड़ कर लोगों का मनोरंजन करते है। 

भगत भगत लोक नाट्य का प्रचलन विशेषकर कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना, बिलासपुर जनपद में है । भगत के निर्देशक को गुरू जी और अन्य कलाकारों को भगतिए कहा जाता है। स्त्री का अभिनय पुरूष ही करता है। भगत में गुरूजी पहले अलाव के इर्द -गिर्द घूमता हुआ अग्नि देवता का पूजन करता है । भगत में कृष्ण के लीला-गान मुख्य विषय होते है । भगत में एक पात्र को कृष्ण बनाया जाता है और चार- पांच सखियां बनायी जाती हैं। फिर इस में हंसी मजाक इत्यादि करके लोगों का मनोरंजन किया जाता है । 

करियाला करियाला हिमाचल प्रदेश का बहुचर्चित लोकनाट्य है । सिरमौर, शिमला और सोलन जिले इसके मुख्य क्षेत्र है । करियाला वर्ष भर किया जाने वाला लोक नाट्य है। करियाला के लिये किसी मंच की आवश्यकता नहीं होती यह त्यौहारों, मेलों, अनुष्ठानों, देवताओं के जागरण पर खुले प्रांगण में किया जाता है। इस में लोग इक्क्ठा होते है और खुले स्थान पर लकड़ियां इक्कठा करके अलाव जलाकर उसके चारों ओर लोग खडे हाते है। जिसे अखाड़ा भी कहते है। एक किनारे पर ढोलक, खंजरी, दमामटा, चिमटा, बांसुरी और नगाडा आदि वाद्ययंत्र लिए बंजतरी बैठ जाते है। चंदरौली करियाला का प्रमुख पात्र यह स्त्री वेशभूषा पहने पुरूष ही होती है। बजंतरियों द्वारा बधाई ताल बजते ही चंदरौली प्रवेश करती है। चंदरौली अपना अलाव का पूरा फेरा पूरा करने के उपरांत चारों दिशाओं से तीन-चार साधु अलख जगाते हुए मंच पर आतें है। इन साधुओं द्वारा समाज के ज्वलंत मुद्दों अंधविश्वासों, ज्ञानी-ध्यानी, मुनि- तपस्वी तथा तंत्र-मंत्र की बातों से लोगों का हास्य व्यंग्यों से मनोरंजन करते है । 

बरलाज हिमाचल प्रदेश में बरलाज के दो रूप है, कुछ स्थानों में बरलाज के नाम से स्थानीय भाषा में बलिराज की गाथा सुनाई जाती है। यह मूल रूप से गीति काव्य नाट्य है । कार्तिक की अमावस्या बूढ़ी दिवाली के नाम से मनाई और दर्शायी जाती है । यह लोकनाट्य सोलन व् सिरमौर में रामायण के प्रसंगों सहित प्रस्तुत किया जाता है । दीपावली के आस-पास देवताओं के मन्दिरों में मेले लगते हैं । रात को मन्दिर के सामने खुले आंगन/ मैदान में लकड़ियों के ढेर लगाकर गीट्ठा (घियाना) जलाया जाता है । सबसे पहले खेल के आरम्भ होते ही गीठे के चारो ओर देवता के वाद्य यंत्रों की धुनों में परिक्रमा की जाती है । देवता के चेला को खेल आती है और लोगों को चावल के दाने बांटता है । तब रामायण के अनेक प्रसंग प्रस्तुत किये जाते हैं । हनुमान से सम्बन्धित दृश्य को हणु, लक्ष्मण, सीता के प्रसंग दो-तीन कलाकार स्थानीय भाषा में प्रसंग गाकर प्रस्तुत करते हैं ।

अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, राज्य व जिला स्तरीय मेले व उत्सव

क्रं उप क्र नाम समय अनुदान अधिसूचना संख्या
अन्तर्राष्ट्रीय स्तरीय
1 1 रेणुका उत्सव,सिरमौर नवम्बर तीन लाख एलसीडी-सी-(15)-3/2005- दिंनाक-12.10.2011
2 2 कुल्लू दशहरा मेला, जिला कुल्लू अक्तूबर तीन लाख एल.सी.डी.-सी(15)-3/2016 दिनांक 07.04.2017
3 3 शिवरात्री,मण्डी फरवरी-मार्च तीन लाख एल.सी.डी.-सी(15)-3/2016-लूज दिनांक 20.02.2019
(राष्ट्र स्तर से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर)
राष्ट्रीय स्तरीय
4 1 ग्रीष्मोत्सव, शिमला मई-जून दो लाख भाषा-ग (17)-12/86-पार्ट-1 दिंनाक 28.02.1997
5 2 मिंजर मेला चम्बा जुलाई का तीसरा सप्ताह दो लाख ………….यथोपरि…………
6 3 लवी, रामपुर नवम्बर दो लाख ………….यथोपरि…………
7 4 विंटरकार्निवाल, मनाली जनवरी दो लाख एलसीडी-एफ-(15)-3/2005- दिंनाक-22.10.2011
8 5 होली, सुजानपुर, हमीरपुर मार्च दो लाख एलसीडी-एफ-(15)-3/2005- दिंनाक-21.08.2010
9 6 मसरूर उत्सव, जसवां,,कांगड़ा दो लाख एलसीडी-एफ-(15)-3/2005- दिंनाक-23.09.2012 राशि पर्यटन विभाग द्वारा
राज्य स्तरीय
10 1 बैसाखी मेला, कालेश्वर, जिला कांगड़ा अप्रैल एक लाख भाषा-ग (17)-12/86-पाट-1 दिंनाक 07.04.94
11 2 रोहडू मेला, रोहडू, जिला शिमला अप्रैल एक लाख ………….यथोपरि…………
12 3 नलवाड, मेला सुन्दरनगर, जिला मण्डी अप्रैल एक लाख ………….यथोपरि…………
13 4 ग्रीष्मोत्सव, धर्मशाला, जिला कांगड़ा मई जून एक लाख ………….यथोपरि…………
14 5 शूलिनी मेला, सोलन, जिला सोलन जून एक लाख ………….यथोपरि…………
15 6 सोमभद्रा महोत्सव, ऊना अक्तूबर एक लाख एलसीडी -सी-(15)-3/2010 दिंनाक-3.4.2010
16 7 हमीर उत्सव, हमीरपुर अक्तूबर एक लाख भाषा-ग (17)-12/86-भाग-1 दिंनाक 17.10.1995
17 8 लोहड़ी मेला परागपुर, जिला कांगड़ा जनवरी एक लाख एलसीडी-एफ-(4)-3/2008- दिंनाक-10.06.2009
18 9 शिवरात्री, बैजनाथ, जिला कांगड़ा फरवरी-मार्च एक लाख
19 10 नलवाडी, बिलासपुर, जिला बिलासपुर मार्च एक लाख भाषा- सी(10)-1/84- दिंनाक 3.08.1985
20 11 होली, पालमपुर, कांगडा मार्च एक लाख भाषा-ग (17)-12/88-भाग-1 दिंनाक 07.04.1994
21 12 दशहरा उत्सव, जैंसिहंपुर, कांगडा़ अक्तुबर एक लाख एलसीडी-एफ-(15)-3/2005- दिंनाक-22.10.2011
22 13 छेश्चू मेला, रिवालसर जिला मण्डी मार्च एक लाख ………….यथोपरि…………
23 14 वामन द्वादशी मेला, सराहां, जिला सिरमौर सितम्बर एक लाख एल.सी.डी-सी (15)-1/2013-एल-2 दिनांक 26.08.2017
24 15 श्री सुकेत देवता मेला सुन्दरनगर मण्डी चैत्र मास की पंचमी तिथि से आरम्भ होकर नवमीं तिथि तक एक लाख एल.सी.डी-सी (15)-3/2016 दिनांक 05.10.2018
25 16 मेला जोगिन्द्रनगर मण्डी 1 से 5 अप्रेैल एक लाख एल.सी.डी-सी (15)-1/2013-एल2 दिनांक 28.05.2019 (जिला स्तरीय से राज्य स्तरीय)
26 17 यमुना शरद महोत्सव, सिरमौर एक लाख एल.सी.डी-सी (15)-4/2019दिनांक 18.09.2019
राज्य स्तरीय जनजातीय मेंले/उत्सव
27 1 लादरचा उत्सव, स्पिति जुलाई एक लाख भाषा-ग (17)-12/86-भाग-1 दिंनाक 07.04.1994
28 2 जनजातीय उत्सव, रिकांगपिओं अक्तुबर-नवम्बर एक लाख भाषा-ग (17)-12/88-भाग-1 दिंनाक 30.05.1995
29 3 जनजातीय उत्सव, केंलाग अगस्त एक लाख भाषा-सी(10)-84-दिंनाक 18.11.1985
30 4. मणिमहेश, भरमौर चम्बा सितम्बर एक लाख भाषा-सी(10)-84-दिंनाक 03.08.1985
31 5. गुरू साड.ज्ञास (गुरू-छन-ज्ञद) मेला, रारंग, जिला किनौैर जून-जुलाई एक लाख एल.सी.डी.-सी (15)-3/2016 दिनांक 21.09.2017
जिला स्तरीय मेले
32 1 बैसाखी मेला ज्वाली नूरपुर, जिला कांगड़ा अप्रेैल 30,000 भाषा-ग(17)12/86-भाग-1 दिंनाक 07.04.94
33 2 बैसाखी मेला राजगढ सिरमौर अपै्रेल 30,000 …………..यथोपरि……………
34 3 नलवाडी मेला करसोग, जिला मण्डी अप्रेैल 30,000 एलसीडी-एफ-(4)1/99 दिंनाक 17.10.95
35 4 कुथाह मेला थुनाग मण्डी अपेै्रेल 30,000 एलसीडी-एफ-(4)1/99 दिंनाक 15.05.2000
36 5 पशु मेला ख्योड गोहर जिला मण्डी अपै्रेल 30,000 ……………यथोपरि……………..दिंनाक 7.9.2005
37 6 मेला आनी कुल्लू मई 30,000 भाषा-ग (17)12/86- भाग -1 दिंनाक 7.4.94
38 7 मेला बंजार, कुल्लू मई 30,000 भाषा-ग(17)12/86-भाग -1 दिंनाक 7.4.94
39 8 सायर मेला, अर्की, सोलन 30,000 एलसीडीएफ-(4)1/99-दिंनाक 14.07.2006
40 9 मांहूनाग मेला करसोग, मण्डी मई 30,000 एलसीडीएफ-(4)1/99-दिंनाक 31.03.2006
41 10 नागिनी उत्सव नूरपुर, जिला कांगड़ा सितम्बर 30,000 भाषा-सी(10)-84-दिंनाक 3.6.1985
42 11 सीपुर मेला मशोबरा, शिमला अप्रैल 30,000 एलसीडी-सी(15)3/2005-दिंनाक 08.06.2007
43 12 दशहरा मेला सराहन अक्तूबर 30,000 ……………यथोपरि……………..
44 13 दशहरा मेला, शाहपुर, कांगड़ा अक्तूबर 30,000 एलसीडी-एफ-(15)-3/2005- दिंनाक-22.09.2012
45 14 बूढी दिबाली निरमण्ड कुल्लू नवम्बर 30,000 एलसीडी-सी(15)3/2005-दिंनाक 02.01.2006
46 15 बाल दिवस मेला बागथन सिरमौर नवम्बर 30,000 भाषा-ग(17)12/85-भाग -1 दिंनाक 17.10.1995
47 16 शिवरात्री मेला काठगढ जिला कांगडा फरवरी-मार्च 30,000 भाषा-सी(10)-84-दिंनाक 03.08.1985
48 17 फाग मेला रामपुर, जिला शिमला फरवरी 30,000 भाषा-ग(17)12/86-भाग -1 दिंनाक 07.04.1994
49 18 एकादशी मेला देवठी, मझगांव,, सिरमौर अक्तुबर-नवम्बर 30,000 एलसीडी-एफ-(15)-3/2005- दिंनाक-22.10.2011
50 19 ऐतिहासिक मेला पिपलू, बंगाना,ऊना मई-जून 30,000 एलसीडी-एफ-(15)-3/2005- दिंनाक-22.10.2011
51 20 ऋषि मार्कण्डेय कृषक विकास एवं पशुपालक सायर मेला, बिलासपुर सितम्बर 30,000 एलसीडी-एफ-(15)-3/2005- दिंनाक-22.10.2011
52 21 फतेह दिवस नादौन, हमीरपुर मार्च 30,000 एलसीडी-एफ-(15)-3/2005- दिंनाक-22.10.2011
53 20 छावनी वीर देवता महाराज,जुब्ब्ल, जिला शिमला जून 30,000 एलसीडी-सी(15)3/2005-दिंनाक 31.08.2012
54 23 देवता बालीचैकी, चच्योट,मण्डी अप्रैल 30,000 एलसीडी-सी(15)3/2005-दिंनाक 31.08.2012
55 24 सैंज मेला, कुल्लू अप्रैल 30,000 एलसीडी-सी(15)3/2005-दिंनाक 23.04.2012
56 25 रैयली मेला, ठियोग, जिला शिमला अगस्त 30,000 एलसीडी-सी(15)3/2005-दिंनाक
57 26 जन्माष्टमी मेला नुरपुर, जिला कांगड़ा अगस्त 30,000 एलसीडी-सी(15)3/2005-दिंनाक
58 27 दशहरा मेला धर्मशाला, जिला कांगड़ा अक्तूबर 30,000 एलसीडी-सी(15)1/2013-दिंनाक 25.09.2014
59 298 दशहरा मेला कुठाड़, सोलन अक्तूबर 30,000 एलसीडी-सी(15)1/2005-दिंनाक 25.09.2014
60 29 दशहरा मेला सुन्नी, जिला शिमला अक्तूबर 30,000 एलसीडी-सी(15)1/2005-दिंनाक 25.09.2014
61 30 एकादशी मेला, बलग, तह० ठियोेग, जिला शिमला अक्तूबर 30,000 एलसीडी-सी(15)1/2005-दिंनाक 01.11.2014
62 31 देव हरसिंह मेला, चनावग, जिला शिमला अप्रैल 30,000 एलसीडी-सी(15)1/2005-दिंनाक 24.04.2015
63 32 नलवाड मेला, भगंरोटू, तह० बल्ह, जिला मण्डी 14, मार्च 30,000 एलसीडी-सी(15)1/2013-दिंनाक 04.03.2016
64 33 किसान मेला, पधर, तह० पधर, जिला मण्डी 15-19 अप्रैल 30,000 एलसीडी-सी(15)1/2013-दिंनाक 04.03.2016
65 34 लिदबड़ मेला, नगरोटा बगवां, जिला कांगड़ा 25.27, मार्च 30,000 एलसीडी-सी(15)1/2013-दिंनाक 04.03.2016
66 35 माता चण्डी देवी जातर (मेला), दून विधान सभा क्षेत्र, जिला सोलन मई 30,000 एलसीडी-सी(15)1/2013-दिंनाक 04.03.2016
67 36 गाहर गाच (गडसा) मेला, तह० भून्तर, जिला कुल्लू 14 मई से 14 जून 30,000 एल.सी.डी(15)-1/2013 दिनांक 01.08.2016
68 37 ग्रीष्मोत्सव घुमारवीं, जिला बिलासपुर 5 अप्रैल से 9 अप्रैल 30,000 एल.सी.डी-सी(15)-3/2016 दिनांक 14.09.2016
69 38 छिंज मेला सल्याणा, जिला कांगड़ा मार्च 30,000 एल.सी.डी-सी(15)-1/2013-एल-1 दिनांक 18.02.2017
70 39 अक्षैणा मेला, जिला कांगड़ा मार्च 30,000 एल.सी.डी-सी(15)-1/2013-एल-1 दिनांक 18.02.2017
71 40 श्री शीतला माता मेला (डैहर) जिला मण्डी 23 मई से 25 मई 30,000 एल.सी.डी-सी(15)-1/2013-एल-2 दिनांक 06.03.2017
72 41 पराशर मेला, जिला मण्डी जून 30,000 एल.सी.डी.-सी(15)-3/2016 दिनांक 13.06.2017
73 42 माँ नगरकोटि मेला, नारग, जिला सिरमौर विक्रमी सम्वत के शुभारम्भ पर प्रथम नवराजे 30,000 एल.सी.डी-सी (15)-3/2016 दिनांक 16.08.2017
74 43 राम नवमी मेला, नैना टिक्कर, जिला सिरमौर चैत्र नवराजे 30,000 एल.सी.डी-सी (15)-3/2016 दिनांक 16.08.2017
75 44 गुग्गा नवमी मेला, पबियाना (धावग) जिला सिरमौर जन्माष्टमी के अगले दिन 30,000 एल.सी.डी-सी (15)-3/2016 दिनांक 16.08.2017
76 45 माता गाडा दुर्गा गुसैण मेला, जिला मण्डी 13 से 15 श्रावण मास 30,000 एल.सी.डी-सी (15)-1/2013-एल-2 दिनांक 16.08.2017
77 46 देवता साहिब लक्ष्मीनारायण नोगली मेला, जिला शिमला 12,13 व 14 आषाढ़ जून मास 30,000 एल.सी.डी-सी (15)-1/2013-एल दिनांक 07.10.2017
78 47 रामपुरी मेला, जिला शिमला 17 व 18 जुलाई 30,000 एल.सी.डी.-सी(15)-1/2013 दिनांक 11.10.2017
79 48 हरोली उत्सव, जिला ऊना अप्रैल 30,000 एल.सी.डी.-सी(15)-1/2013 दिनांक 11.10.2017
80 49 पंजयाली मेला, ग्राम पंचायत खटनोल, जिला शिमला नवम्बर 30,000 एल.सी.डी.-सी(15)-1/2013 दिनांक 11.10.2017
81 50 होली मेला उत्सव धीरा जिला कांगडा प्रतिवर्ष मार्च 30,000 एल.सी.डी.-सी(15)-3/2016 एल दिनांक 28.09.2018
82 51 मकर सक्रांति मेला ततापानी (सुन्नी) जिला मण्डी 9 जनवरी से 14 जनवरी (प्रतिवर्ष) 30,000 एल.सी.डी.-सी(15)-4/2018 एल दिनांक 14.01.2019
83 52 माता मनसा देवी मेला, धर्मपुर जिला सोलन अप्रैल, चैत्र मास के नवरात्रों में रामनवमी के दिन 30,000 एल.सी.डी.-सी(15)-3/2016 एल दिनांक 30.01.2019
84 53 लोहडी मेला, ग्राम पंचायत पीपलू, विकास खण्ड धर्मपुर, जिला मण्डी 13,14व 15 जनवरी 30,000 एल.सी.डी.-सी(15)-3/2016 एल दिनांक 30.01.2019
85 54 कोटखाई उत्सव, जुब्बल कोटखाई जिला शिमला इस वर्ष 19 व 20 जून, 2018 30,000 एल.सी.डी.-सी(15)-1/2013 एल 1 दिनांक 30.01.2019
86 55 सिराज दीप उत्सव थुनाग मण्डी दिपावली के उपलक्ष्य में हर वर्ष मनाया जाता है 30,000 एल.सी.डी.-सी(15)-4/2018 दिनांक 28.05.2019
87 56 नलवाड़ मेला लम्बाथाच, थुनाग मण्डी 7 से 12 सितम्बर 30,000 एल.सी.डी.-सी(15)-4/2018 दिनांक 22.07.2019
88 57 बैसाखी नलवाड़ मेला, झण्डूता, जिला बिलासपुर 13 से 17 अप्रैल प्रतिवर्ष 30,000 एल.सी.डी-सी(15)-3/2016 पार्ट दिनांक 18.01.2020
89 58 नलवाड़ मेला, सुन्हानी जिला बिलासपुर 01 से 04 अप्रैल प्रतिवर्ष 30,000 एल.सी.डी-सी(15)-3/2016 पार्ट दिनांक 18.01.2020
जिला स्तरीय जनजातीय मेले
90 1. पोरी उत्सव, त्रिलोकी नाथ अगस्त 30,000 भाषा-सी (10)-84-दिंनाक 03-08-1985
91 2 फुलाइच उत्सव, रिब्बा, किन्नौर मार्च 30,000 ……………यथोपरि…………
92 3 छतराडी मेला, चम्बा सितम्बर 30,000 ……………यथोपरि……………..
93 4 जन्माष्टमी मेला, युला किन्नौर अगस्त 30,000
94 5 फूल यात्रा मेला, पांगी, भरमौर अक्तूबर 30,000