हिमाचल राज्य अभिलेखागार
हिमाचल प्रदेश का इतिहास भारत के इतिहास से कोई पृथक नहीं है। क्योंकि युगों-युगान्तरों से विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं से यह गुंथा जाता रहा है। इस पहाड़ी क्षेत्र का स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण-सम्पन वातावरण, मूल्यवान प्राकृतिक सम्पदा, साहसिक जीवनशैली तथा अद्वितीय आतिथ्य आक्रांताओं को सदैव ही आकर्षित करता रहा है। हिमाचलवासियों ने विदेशी शासकों को अनुभव किया, मुसलमान शासकों के आगमन के साक्षी बने, गोरखा सैन्य अभियानों को झेला, सिखों की विजय देखी तथा ब्रिटिश शासकों के औपनिवेशिक साम्राज्यवादी शासन की स्थापना के साथ-साथ स्थानीय शासकों का शासन काल भी देखा, जो कि अपने पीछे विशालकाय अतीत, जो हिमाचल तथा हिमाचल से बाहरी क्षेत्रों तक बिखरा पड़ा था, छोड़ गए हैं। आज यह अतीत इतिहासकारों को अपनी अनिवार्यता जताता है कि वह इसमें रूचि लेकर इस ऐतिहासिक सामग्री को भविष्य के सदर्भ में संग्रहित करें और राज्य के इतिहास की एक विशिष्ट/अनन्य छाप (छवि) उत्पन्न करें। परिणामस्वरूप स्वतन्त्रता उपरान्त का काल ऐतिहासिक दस्तावेजों को संजोने की आवश्यकता से चिह्नित किया गया है।
राज्य का आधुनिक इतिहास
मानव सभ्यता के प्रारम्भिक दिनों से ही हिमाचल प्रदेश का इतिहास तथा परम्पराएं प्रचलित हैं। नवपाषाण युग के मानव के वंशज कोल तथा आर्यवंश प्रशाखा से सम्बन्धित खशों ने इन पहाड़ी क्षेत्रों के आदिवासियों को अपने अधीन कर इन क्षेत्रों में अपने उपनिवेश स्थापित किए तथा इस पहाड़ी भू-भाग के नये स्वामी बन बैठे। महाभारत में भी त्रिगर्त, औदुम्बर, कुलूत तथा कालिन्द जैसे महत्तवपूर्ण जनपदों के संदर्भ प्राप्त होते हैं। पाणिनि द्वारा रचित राजतरंगिणी पुस्तक में भी इन जनपदों का उल्लेख किया गया है।हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व को सिद्ध करते पाणिनि ने बताया कि त्रिगर्त छः राज्यों का महासंघ था जिसके शासक मण्डल में बहुत से शासकों का आधिपत्य रहा है, जोकि सम्बन्धित जनपदों, राज्यों तथा रियासतों इत्यादि पर शासन करते थे। हिमाचल प्रदेश के इतिहास के ऐतिहासिक स्रोतों की यात्रा के दौरान यह स्मरण रखना आवश्यक है कि भारत के मानचित्र पर हिमाचल प्रदेश नामक राज्य या प्रान्त का कोई अस्तित्व नहीं था क्योंकि हिमाचल प्रदेश भारत की स्वतन्त्रता के उपरान्त एक केन्द्र शासित राज्य के रूप में अस्तित्व में आया और क्रमिक चरणों में इसका यह वर्तमान आकार एवं अवस्था विकसित हुई। हिमाचल प्रदेश में भारत की स्वतन्त्रता की पूर्व संध्या पर 22 राजसी रियासते थीं, जिन्हें तत्कालीन परिवेश मेें पंजाब हिल स्टेट्स (पंजाब की पहाड़ी रियासतें ) तथा शिमला हिल स्टेट्स (शिमला की पहाड़ी रियासतें ) कहा जाता था।
यह रियासतें निम्नलिखित नामों से विख्यात थीं
- 1 बिलासपुर
- 2 चम्बा
- 3 मण्डी
- 4 सिरमौर
- 5 सुकेत
- 6 बुशैहर
- 7 क्योथंल
- 8 जुब्बल
- 9 बघाट
- 10 बाघल
- 11 कुमारसैन
- 12 धामी
- 13 भज्जी
- 14 थरोच
- 15 बेजा
- 16 महलोग
- 17 कुनिहार
- 18 शांगरी
- 19 बलसन
- 20 कुठाड़
- 21 हिंडूर
- 22 दरकोटी
इसमें से बिलासपुर, चम्बा, सुकेत, मण्डी, तथा सिरमौर की रियासतें नरेंद्रमण्डल (Chamber of Princes) की सदस्य थी जिन्हें पंजाब की पहाड़ी ( Punjab Hill States) रियासतों के नाम से जाना जाता है, शेष 17 रियासतें जो नरेंद्रमण्डल की सदस्य नहीं थी वह शिमला पहाड़ी रियासतों (Simla Hill States) के नाम से जानी जाती थीं। इसके फलस्वरूप स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त जब देश को सभी राजसी रियासतों के एकीकरण की समस्या से जूझना पड़ा, तब विवादों की गर्माहट में नरेंद्रमण्डल तथा गैर नरेंद्रमण्डल रियासतों को संगठित करने की भी अग्नि परीक्षा का सामना करना पड़ा। स्वाधीनता तथा नागरिक अधिकारों के लिए देश में हो रहे संघर्ष से पहाड़ी रियासतें भी प्रभावित हुईं। भूमि बन्दोवस्त अभियान, मण्डी में लोकप्रिय विद्रोह, वर्ष 1939 में अखिल भारतीय रियासती सम्मेलन, पहाड़ी रियासतों में प्रजा मण्डल स्थापित करने के निर्णयों के परिणामस्वरूप, पहाड़ी लोगों में सामान्य जागृति उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की गई। चम्बा, मण्डी, बिलासपुर, बुशैहर, जुब्बल, सिरमौर तथा अन्य छोटी पहाड़ी रियासतों में प्रजा मण्डल गठित किये गए। दिसम्बर 1939 में हिमालयन रियासती प्रजा मण्डल का गठन किया गया ताकि वह विभिन्न रियासतों में राजनीतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं में समन्वय प्रदान कर उनको निर्दिष्ट कर सकेें। सिरमौर रियासत में भी प्रजा मण्डल ने खूब गति पकड़ी तथा रियासती अधिकारियों की मनमानी के विरूद्ध प्रजा मण्डल कार्यकर्ताओं ने वहां पर समानांतर सरकार की स्थापना की। चम्बा में भी भाई-भतीजावाद के विरूद्ध बगावत का बिगुल बजाया गया। दूसरी और बुशैहर सुधार सम्मेलन तथा बुशैहर प्रेम सभा ने बुशैहर और बुशैहर प्रजा मण्डल के पुनर्सक्रियकरण में अहम-भूमिका निभाई। पहाड़ी रियासतों में एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना के लिए प्रजा मण्डल आन्दोलन द्वारा रियासती राजकुमारों पर गहन दबाव बनाया गया, परिणामस्वरूप प्रजा मण्डल आन्दोलन के दबाव में आम जनता की बहुत सी मांगों को स्वीकार कर लिया गया तथा इसी प्रभाव से नृशंस विदेशी शासन से मुक्ति प्राप्त हुई तथा स्वतन्त्रता संघर्ष का समापन हुआ। भारतीयों के लिए एक मार्ग प्रशस्त हुआ कि वह लोकतांत्रिक कथनों द्वारा स्वयं को शासित करें। पहाड़ों के इस भाग में भी इस मांग ने जोर पकड़ा कि पहाड़ी रियासतों का पूर्वी पंजाब में विलय कर देना चाहिए, लेकिन इसका रियासती शासकों तथा स्थानीय लोगों ने पुरजोर विरोध इस आधार पर किया कि इन क्षेत्रों के लोगों की बनावट, शिष्टाचार, रीति-रिवाज तथा भाषा पंजाब के लोगों से भिन्न है। रियासतों के शासकों तथा प्रजामण्डल के प्रतिनिधियों ने मार्च 1948 में हिमाचल प्रदेश के गठन की घोषणा कर डाली, लेकिन प्रजा मण्डल के एक घटक द्वारा इसका विरोध किया गया, क्योंकि वह प्रशासनिक शक्तियों का हस्तांतरण जन प्रतिनिधियों को सौंपने के इच्छुक थे, न कि रियासती शासकों को। उनकी सोच थी कि प्रजा जो परिवर्तन की इच्छुक है, उनके हित ही मुख्यतः अधिकाधिक प्रभावित होते हैं, न कि रियासती शासकों के। सर्वप्रथम 15 अप्रैल, 1948 को हिमाचल प्रदेश का केंद्रीय शासित क्षेत्र के रूप में गठन किया गया तथा इसका प्रशासक मुख्य आयुक्त तथा उपायुक्त को बनाया गया। सितम्बर 1948 में मुख्य आयुक्त को उनके प्रशासनिक कार्यों में परामर्श देने के दृष्टिगत एक सलाहकार परिषद् का गठन किया गया। परिषद् में शासक वर्ग के तीन तथा सामान्य जनता द्वारा मनोनीत छः प्रतिनिधि थे। परिषद् का कार्य विशुद्ध रूप से परामर्श देना था, अतः वास्तविक रूप से कोई शक्तियां निहित नहीं थीं तथा रोष स्वरूप कांग्रेस के सदस्यों ने सलाहकार परिषद् से त्याग पत्र दे दिया। हिमाचल प्रदेश के गठन उपरान्त प्रथम कार्य भूतपूर्व रियासतों में कार्यरत पदस्थों की सेवाओं के एकीकरण तथा पुनर्गठन का रहा। इसमें उक्त पदस्थों की सेवाओं के एकीकरण की समस्या ही नहीं थी, बल्कि उनमें समरूपी कार्यप्रणाली को लागू करना तथा उसके मानकों में सुधार लाना था। प्रारम्भ में मुख्य आयुक्त तथा उपायुक्त के साथ लगभग आधा दर्जन अधिकारियों को प्रशासनिक अमलों में जुटाया गया, जबकि प्रदेश के लोग हिमाचल प्रदेश राज्य के लिए एक बड़ी सोच संजोए हुए थे। भारत की सरकार ने लोगों की इच्छाओं की रक्षा के ध्यानार्थ ‘गवर्नमेंट आफ इण्डिया पार्ट-‘सी’ स्टेटस् एक्ट, 1951 ( Government of India Part C States, Act, 1951) अधिनियमित किया, जिसे राष्ट्रपति द्वारा 6 सितम्बर, 1951 को संस्तुती प्रदान की गई। इस अधिनियम के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया कि राज्य में एक निर्वाचित सभा को गठित कर मंत्रिपरिषद बनाई जाए। भारत के राष्ट्रपति द्वारा उक्त अधिनियम को अनुमति प्राप्त होने से राज्य के मुख्य आयुक्त की जगह उप-राज्यपाल को प्रदान की गई। इसके परिणामस्वरूप नवम्बर, 1951 में विधानसभा के 36 सदस्यों के चुनाव करवाए गए। 1 मार्च, 1952 को मेजर जनरल एम०एस० हिम्मत सिंह द्वारा उप-राज्यपाल का कार्यभार ग्रहण किया गया तथा 24 मार्च,1952 को डा० वाई० एस० परमार की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय लोकप्रिय मंत्रिपरिषद् ने शपथ ग्रहण की। वर्ष 1956 हिमाचल प्रदेश के प्रशासनिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया। 1956 में ‘राज्य पुनर्गठन अधिनियम,1956’ की घोषणा एवं प्रख्यापन से हिमाचल प्रदेश को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा प्राप्त हुआ। यह केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा 1 नवम्बर, 1956 से लागू हुआ तथा इसी तिथि से वदरी के राजा बजरंग बहादुर सिंह ने केन्द्र शासित प्रदेश के उप-राज्यपाल के पद का कार्यभार ग्रहण किया। 31 अक्तुबर, 1956 को मंत्रीमण्डल के भंग होने से सचिवालय के प्रशासनिक ढांचे का पुनर्गठन किया गया तथा विभिन्न विभागों का कार्यभार प्रशासनिक सचिवों को पुनः निर्दिष्ट किया गया। वर्ष 1956 में भारत की सरकार ने सैद्धान्तिक रूप में हिमाचल प्रदेश को भारतीय प्रशासनिक सेवा संवर्ग स्वीकृत किया।
क्षेत्रीय परिषद्
विधिकर्ताओं के दिमाग पर स्थानीय मामलों/विषयों के प्रबन्धन में संतुलन लाने का प्रश्न भारी पड़ रहा था। अतः भारतीय संसद द्वारा दिसम्बर 1956 में ‘क्षेत्रीय परिषद् अधिनियम’ पारित किया गया । इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार जिला बोर्ड को आदर्श मानते हुए उसी आधार पर क्षेत्रीय परिषद् को हिमाचल प्रदेश में स्थापित किया गया। इस अधिनियम से दोहरी शासन प्रणाली को परिचित करवाया गया, जिसमें विभिन्न प्रकार के सैद्धांतिक सम्बन्ध जैसे क्षेत्रीय परिषद् व उप-राज्यपाल शासन प्रणाली का जन्म हुआ। प्रशासनिक विषयों को दो भागों में बांटा गया, एक भाग में विद्यालय स्तर की शिक्षा, चिकित्सा, गाँवों की सड़कें, जिला स्तर तक का पशुपालन, पुल तथा भवन, उद्योगों का विकास, कृषि तथा सहकारिता, पंचायतों की देख-रेख तथा नियंत्रण शामिल थे, जो क्षेत्रीय परिषद् के अध्यक्ष द्वारा प्रशासित होते थे तथा उसकी सहायता के लिए मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता था, जोकि क्षेत्रीय परिषद् के अधीनस्थ विभिन्न विभागों का वास्तविक रूप से नियंत्रण अधिकारी होता था। दूसरे समूह में वित्त, नियुक्तियाॅं, न्याय-तंत्र, कानून-व्यवस्था सम्मिलित थे, जोकि उप-राज्यपाल द्वारा संचालित होते थे तथा इनके कार्यों के लिए उप-राज्यपाल को प्रशासक नामित किया गया था। इस प्रकार से केन्द्र शासित प्रदेश में पदाधिकारियों के दो समूह थे। i ) उप-राज्यपाल (प्रशासक) जोकि केंद्रीय परिषद् के अध्यक्ष के साथ कार्य करता था। ii ) उप-राज्यपाल (प्रशासक) प्रशासनिक सचिवों के साथ कार्य करता था। केन्द्रीय गृह मंत्री को परामर्श देने के उद्देश्य से सलाहकार समिति बनाई गई, जिसमें उप-राज्यपाल तथा हिमाचल प्रदेश से सांसदों/संसद सदस्यों को सम्मिलित किया गया। केन्द्रीय सरकार को उन विषयों पर जोकि प्रशासनिक नीति, विधायिका तथा विधिय मामलों पर परामर्श दे सकें। संक्षेप में समस्त प्रक्रिया अनुचित रूप से संगठित थी। इसका दूसरी पंचवर्षीय योजना पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा तथा केंद्रीय सरकार इस सच से परिचित थी, इसलिए केन्द्र शासित प्रदेश अधिनियम, 1963 लागू किया, जिसके द्वारा वर्ष 1962 में पुनर्निर्वाचित क्षेत्रीय परिषद् को विधान सभा में परिवर्तित कर दिया गया तथा वाई०एस० परमार के नेतृत्व में एक जुलाई, 1963 को तीन सदस्य लोकप्रिय मन्त्रीमण्डल द्वारा शपथ ग्रहण की गई। डा०वाई०एस० परमार के अतिरिक्त दो अन्य मंत्री ठाकुर कर्म सिंह तथा श्री हरीदास थे।
पुनर्गठन
वर्ष 1965 में भाषायी आधार पर पंजाब के क्षेत्रों –पंजाब, कांगड़ा, कुल्लू, शिमला, लाहौल तथा स्पीति, अम्बाला जिला के उपमण्डल नालागढ़ का क्षेत्र तथा होशियारपुर जिला के पुनर्गठन का प्रश्न पुनः प्रस्फुटित हुआ। इस अवसर की पंजाब के पहाड़ी क्षेत्र तथा हिमाचल प्रदेश के लोगों को दीर्घकाल से प्रतीक्षा थी, ताकि जोरदार ढंग से राज्य के एकीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकें। वर्ष 1966 के नवम्बर मास के प्रथम दिन होशियारपुर की ऊना तहसील के भाग तथा गुरदासपुर जिला के डलहौजी-बकलोह क्षेत्र ( क्षेत्रफल 56019 वर्ग किलोमीटर) , का हिमाचल प्रदेश मे विलय कार्य परिणत हुआ। इसके साथ पहाड़ी क्षेत्र के लोगों का दीर्घकालीन स्वप्न पूरा हुआ। वर्ष 1966 में जब पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों का हिमाचल प्रदेश में एकीकरण किया गया तो निम्नलिखित जिलों तथा तहसीलों में नए प्रशासनिक विभाजन किए गए।
जिला कांगड़ा | जिला कुल्लू | जिला शिमला | जिला लाहौल स्पीति |
तहसील कांगड़ा | तहसील कुल्लू | तहसील शिमला | तहसील लाहौल |
तहसील पालमपुर | उप-तहसील बंजार | तहसील कण्डाघाट | तहसील स्पीति |
तहसील नूरपुर | उप-तहसील आनी | तहसील नालागढ़ | |
तहसील देहरा गोपीपुर | उप-तहसील निरमण्ड | ||
तहसील हमीरपुर | |||
तहसील ऊना (यह जिला होशियारपुर की तहसील थी) |
राज्यत्व ( पूर्ण राज्य का दर्जा )
हिमाचल प्रदेश को 25 जनवरी, 1971 को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ तथा कुछ जिलों का सरकार की अधिसूचना संख्याः 3-32/71-GAC दिनांक 29 अगस्त, 1972 के अन्तर्गत पुनर्गठन किया गया।
इतिहास, स्थापना तथा अभिषेकात्मक/औपचारिक/अधिष्ठापन सूचना
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा राज्य अभिलेखागार के गंठन के महत्व को समझने के दृष्टिगत वर्ष 1979 में राज्य अभिलेखागार की स्थापना के तौर-तरीकों को समझने के उद्देश्य से सरकार की अधिसूचना संख्या A (4)-2/78 दिनांक 09.02.1979 के अन्तर्गत 11 सदस्यीय हिमाचल प्रदेश अभिलेख प्रबन्धन समिति का गठन किया गया। लुप्त सामंतवाद, समाप्त हो चुके साम्राज्य, थम चुके औपनिवेशिक शासन तथा स्वतन्त्रता संघर्ष की घटनाओं के अवलोकन में भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख आयोग तथा राज्य प्रशासनिक निकायों की भूमिका राज्य अभिलेखागार की स्थापना में विशिष्ट रही है। परिणामस्वरूप राज्य अभिलेखागार नामक शब्द अब हिमाचल प्रदेश में शोधकर्ताओं के लिए एक स्वप्न मात्र नहीं रह गया था तथा 19 अप्रैल, 1986 को तत्कालीन मुख्यमंत्री के द्वारा हिमाचल राज्य अभिलेखागार का शुभारंभ दुनिया भर के शोधकर्ताओं को अभिनन्दित कर गया।
लिखित धरोहर का प्रारम्भ में संकलन
19 अप्रैल, 1986 को राज्य अभिलेखागार की स्थापना के तुरन्त पश्चात् जिलाधीश कार्यालय कांगड़ा एवं सिरमौर तथा जिला बोर्ड कांगड़ा के ऐतिहासिक एवं प्रशासनिक अभिलेखों का चयन किया गया। इसी वर्ष के भीतर ही 12,000 दुर्लभ पुरा-नस्तियों को राज्य अभिलेखागार में संचित किया गया। रामपुर बुशैहर, कुमारसेन, तथा सांगरी की भूतपूर्व रियासतों के अभिलेखों को भी पुरालेख संग्रह स्थल में स्थानान्तरित किया गया। इसी वर्ष मान्यवर एडमिरल आर० के० एस० गांधी,राज्यपाल, हिमाचल प्रदेश द्वारा हिमाचल राज्य अभिलेखागार का निजी भ्रमण करते हुए अभिलेखीय सम्पदा का निरीक्षण किया गया। अब हिमाचल राज्य अभिलेखागार तीव्र गति से दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति करता हुआ अपने अभिलेखीय भण्डार को बढ़ाने लगा।
निजी व्यक्तित्वों का योगदान
लोक अभिलेखों के अतिरिक्त भी भूतपूर्व रियासतों के शासकों जैसे रामपुर बुशैहर, कुमारसेन, सांगरी द्वारा शानदार योगदान देते हुए 10239 पुरानी एवं दुर्लभ नस्तियों, पाण्डुलिपियों जिनका कालक्रम 1854-1936 रहा है, अभिलेखागार को सौंपा गया। तदोपरान्त राज्य अभिलेखागार के उद्यमशील पदस्थों ने बड़ी संख्या में पुरानी एवं दुर्लभ पाण्डुलिपियों, नस्तियों, पुस्तकों, राजपत्रों, विवरणिकाओं/गजेटियरों का संग्रहण किया। यहाँ यह व्यक्त करना भी उचित होगा कि वर्ष 1952-1961 के काल की 22 दुर्लभ नस्तियों को श्री एस० सी० कटोच, पूर्व अध्यक्ष, हिमाचल प्रदेश राज्य विधुत बोर्ड, द्वारा राज्य अभिलेखागार को सौंपा गया। यह नस्तियाँ अपने समय के एशिया के सबसे ऊंचे भाखड़ा बांध के बारे विस्तार से बताती हैं। इसमें जिला पदाधीशों, उपमण्डल अधिकारियों, विभागाध्यक्षों तथा सचिवालय अभिलेख अधिकारियों और नगर निगम-परिषदों द्वारा उपलब्ध पुराने अभिलेखों को अपने सम्बन्धित क्षेत्रों में जमा कराने तथा राज्य अभिलेखागार को समृद्ध करने में निभाई गई अहम भूमिका प्रशंसनीय है।
लोक/निजी अभिलेख स्वामित्व (प्रचलित अभिलेखों की परिचय सूची)
लोक/निजी अभिलेख स्वामित्व (प्रचलित अभिलेखों की परिचय सूची)
क्रम संख्या | विभागों के नाम | कालक्रम सम्मिलित वर्ष | नस्तियों की कुल संख्या | टिप्पणी |
---|---|---|---|---|
1 | नगर निगम, शिमला | 1873-1954 | 2058 | ——— |
2 | विदेश-गुप्त-राजनैतिक विभाग के अभिलेख / नस्तियां | 1811-1950 | 0333 | ——— |
3 | पंजाब पहाड़ी रियासतों अभिकरण, हिमाचल प्रदेश राज्य सचिवालय, शिमला | 1863-1948 | 1979 | ——— |
4 | जिलाधीश, बिलासपुर | 1955-1972 | 0168 | ——— |
5 | जिलाधीश, कांगड़ा स्थित धर्मशाला | 1850-1972 | 1411 | ——— |
6 | जिलाधीश, मण्डी | 1935-1950 | 447 | ——— |
7 | जिलाधीश, चम्बा | 1913-1966 | 0667 | ——— |
8 | श्री एस० सी० कटोच, पूर्व अध्यक्ष राज्य विधुत बोर्ड हिमाचल प्रदेश | 1952-1961 | 0022 | ——— |
9 | पंजाब राज्य गैज़ेट | 1850-1950 | 0646 (बड़े खण्ड) | जीर्णोद्धाराधीन |
10 | भारत के गैज़ेट,जिलाधीश कार्यालय, कांगड़ा स्थित धर्मशाला से प्राप्त | 1901-1934 | 0134 (बड़े खण्ड) | -यथोपरि- |
11 | पंजाब सरकार के गैज़ेट, नगर-निगम शिमला से प्राप्त। | 1913-1969 | 729़ | -यथोपरि- |
12 | रामपुर बुशैहर से प्राप्त अभिलेख | – | 54 | रूपान्तरित किए जाने अपेक्षित हैं। |
13 | नगर समिति, शिमला की बैठकों की कार्यवाही। | 1872-1949 | 50 बैठकों/ब्यौरों की कार्यवाही के 13 खण्ड | ——– |
14 | राजस्व विभाग, मण्डी से प्राप्त अभिलेख | 1912-1948 | 38 बस्ता | टांकरी भाषा में |
15 | जिला बोर्ड, कांगड़ा | 1854-1972 | 1038 नस्तियां | ——– |
16 | हिमाचल प्रदेश सचिवालय (खण्ड – 1) | 1948-1962 | 965 नस्तियां | ——– |
17 | जिलाधीश मण्डी | 1949-1973 | 193 नस्तियां | ——– |
18 | पंजाब राज्य अभिलेखागार से प्राप्त दुर्लभ पुस्तकें । | 1881-1924 | 406 | ——– |
19 | रामपुर बुशैहर से प्राप्त दुर्लभ पुस्तकें । | 1875-1935 | 500 | ——– |
20 | नाहन से प्राप्त अभिलेख | ——– | 23311-केसिज़ | उर्दू भाषा में |
21 | जिलाधीश मण्डी से प्राप्त दुर्लभ पुस्तकें । | ——– | 200 | छँटाई कार्याधीन है। |
22 | बन्दोबस्त विभाग की जिला कुल्लू से प्राप्त नस्तियां। | 1841-1953 | 50 नस्तियां | ——– |
23 | हिमाचल प्रदेश सचिवालय (खण्ड-2) | 1950-1962 | 238 नस्तियां | ——– |
24 | राज्य अभिलेखागार संदर्भ पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकें । | ——– | 1000 | ——– |
25 | नगर-निगम, शिमला से नगर-निगम एवं गेयटी परिसर (भवन) की नस्तियां। | ——– | 251 | ——– |
26 | भारत की जनगणना रिपोर्ट | 1951-2001 | 93 | …………………… |
दुर्लभ पुस्तकें
हिमाचल राज्य अभिलेखागार में 50 दुर्लभ पुस्तकों की प्रतियाँ (छायाप्रति) शोधकार्य हेतु उपलब्ध हैं। जिसकी सूची निम्न अनुसार है :
क्रम संख्या | पुस्तको के नाम | बर्ष |
---|---|---|
1 | पंजाब राज्य गैज़ेटियर खण्ड 35 भाग-बी बिलासपुर स्टेट | 1934 |
2 | बिलासपुर का इतिहास (हिन्दी ) | 1941 |
3 | रिपोर्ट कानूनी बन्दोबस्त कैहलूर स्टेट बिलासपुर (उर्दू) | 1908 |
4 | चम्बा स्टेट गैज़ेटियर खण्ड.22 (भाग-ए) | 1904 |
5 | चम्बा स्टेट गैज़ेटियर (सांख्यिकी तालिका) खण्ड.22 भाग-बी | 1904 |
6 | चम्बा स्टेट गैज़ेटियर (सांख्यिकी तालिका) भाग-बी | 1912 |
7 | जिला चम्बा की मूल्यांकन विवरणी | 1958 |
8 | कांगड़ा मन्दिर की आगंतुक पुस्तकें (भाग-१ और २ ) | 1872-1883 |
9 | कांगडा जिला गैज़ेटियर खण्ड.10 (भाग-ए) | 1904 |
10 | कांगडा जिला गैज़ेटियर खण्ड.7 (भाग-ए) | 1924-25 |
11 | कांगड़ा जिला का प्रथागत कानून | 1919 |
12 | कांगडा गैज़ेटियर भाग-2 कुल्लू और सराज भाग-3 लाहूल स्पिति-चार | 1917 |
13 | कांगडा बन्दोवस्त रिपोर्ट | 1872 |
14 | त्वारिख राजगान-ए-कांगड़ा | |
15 | जिला कांगडा बन्दोबस्त रिपोर्ट | 1855 |
16 | सुकेत स्टेट गैज़ेटियर | 1924 |
17 | मण्डी स्टेट का इतिहास | 1930 |
18 | किन्नौर (हिन्दी) | 1957 |
19 | जम्मू का इतिहास (उर्दू) | |
20 | सिरमौर स्टेट गैज़ेटियर (भाग-एक) | 1934 |
21 | नालागढ का इतिहास (उर्दू) | |
22 | भारत की जनगणना खण्ड.5 ( हिमाचल प्रदेश मेले और त्यौहार भाग-7-बी ) | 1961 |
23 | कोटी स्टेट (शिमला ) बन्दोबस्त रिपोर्ट | 1916-17 |
24 | जुब्बल स्टेट सम्बन्धित पत्राचार | 1833-57 |
25 | पंजाब जिला गैज़ेटियर खण्ड-8 .ए (जिला शिमला) | 1904 |
26 | जिला शिमला का पहला नियमित बन्दोबस्त | 1831-83 |
27 | वंशविज्ञान टिप्पणियां बुशैहर स्टेट शिमला हिल | 1911 |
28 | जिला शिमला गैज़ेटियर | 1881-83 |
29 | राज्य गैज़ेटियर शिमला हिल स्टेट (खण्ड. 8) | 1910 |
30 | सिरमौर स्टेट गैज़ेटियर भाग-ए | 1934 |
31 | जम्मू का इतिहास (उर्दू) – | |
32 | क्योंथल स्टेट बन्दोबस्त रिपोर्ट(उर्दू) | 1901 |
33 | बन्दोबस्त रिपोर्ट महलोग स्टेट (उर्दू) | 1910-AD |
34 | क्योंथल स्टेट बन्दोबस्त रिपोर्ट (उर्दू) | 1901 |
35 | चन्द्रावंशी राज्य की वंशावली व ऐतिहासिक रिपोर्ट | 1940 |
36 | त्वारिख-ए-कहलूर,बिलासपुर (उर्दू) | |
37 | तिब्बती बुद्ध धर्म में महिलाओं की धार्मिक अभिव्यक्ति | 2001 |
38 | पंजाब गैज़ेटियर मण्डी स्टेट | 1920 |
39 | कुल्लू के वजीरों की वजीरी रूपी, चांदी का देश। | 1873 |
40 | पंजाब स्टेट गैज़ेटियर खण्ड.8ए | 1904 |
41 | रिपोर्ट बन्दोबस्त रियासत बाघल जिला सोलन (उर्दू) | 1908 |
42 | लाहौर में शासन करने वाले परिवार का इतिहास | |
43 | त्वारिख खानदान राजगान कहलूरिया रियासत कहलूर बिलासपुर | |
44 | बंदोबस्त जुब्बल स्टेट | 1907 |
45 | रक्षित सिख व हिल स्टेट की कालातीत/सुरक्षित राज्य की रिपोर्ट | 1824 |
46 | त्वारिख ए जुब्बल(उर्दू) | |
47 | बंदोबस्त रिपोर्ट सिरमौर स्टेट (उर्दू) | 1938 |
48 | धामी स्टेट (जिला शिमला) पहला नियमित बंदोबस्त | 1916 |
49 | शिमला हिल स्टेट गैज़ेटियर खण्ड.-आठ भाग-ए (पंजाब सरकार) | 1934 |
50 | प्राचीन कालीन वास्तु चम्बा स्टेट भाग-2 | 1957 |
राज्य गैज़ेट विभाग से प्राप्त गैज़ेट तथा पुस्तकें।
इसके अतिरिक्त राज्य गैज़ेट विभाग के विलय उपरान्त प्राप्त राज्य विवरणिकायें तथा दुर्लभ पुस्तकें भी उपलब्ध हैं। यह वर्ष 1819 के कालक्रम से प्रारम्भ 26 विभिन्न राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों के 427 गैज़ेटियर तथा 236 दुर्लभ पुस्तकें हैं।
अप्रचलित टिकटें ।
हिमाचल प्रदेश की भूतपूर्व रियासतों की अदालतों एवं गैर अदालतों की टिकटें जिनका रूपये 592373,38 (मूल्य रूपये पाँच लाख, बानवे हजार, तीन सौ तिहत्तर तथा पैसे अठतीस मात्र) को परिरक्षित किया गया है। ताकि तत्कालीन रियासतों की राजस्व रसीद प्रणाली की जानकारी प्राप्त की जा सके।
सामान्य गतिविधियाँ
- राज्य अभिलेखागार में नस्तियों का नवीनीकरण।
- हिमाचल प्रदेश राज्य सचिवालय के पुराने लोक अभिलेखों की छंटाई, निराई, मूल्यांकन तथा निरीक्षण।
- राज्य के समस्त क्षेत्रों में अवस्थित कार्यालयों के पुराने लोक अभिलेखों की छंटाई, निराई, मूल्यांकन तथा निरीक्षण।
- राज्य अभिलेखागार को समृद्ध करने के उद्देश्य से प्रदेश के पुराने अभिलेखों को पंजाब राज्य अभिलेखागार में तलाशना,शोध करना तथा उनकी छायाप्रतियां प्राप्त करना।
- देश-विदेश से आने वाले लेखकों, शोधार्थियों, आगंतुकों तथा जिज्ञासुओ को शोध सामग्री प्रदान करना ।
- राज्य में निजी अभिलेख सर्वेक्षण करना।
- हिमाचल प्रदेश लोक अभिलेख अधिनियम 2006 तथा नियम 2008 का क्रियान्वयन एवं लोकप्रिय बनाना।
- न्यूज लैटर का मुद्रण, प्रदर्शनियों का आयोजन, कार्यशाला व्यवस्थित करना तथा वृहद प्रचार हेतु अभिलेखीय सूचनाओं को प्रसारित करना राज्य अभिलेखागार की विशिष्टता है।